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Thursday, March 6   4:17:43
criterion of greatness

क्या बनाता है किसी को महान? जानिए इसके पीछे छुपे रहस्य

कहा गया है कि व्यक्ति जन्म से नहीं, बल्कि अपने कर्मों से महान बनता है। हमारे देश में अनेक महान विभूतियाँ और महापुरुष हुए हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि महानता की कसौटी क्या है? किस आधार पर किसी व्यक्ति की महानता को आँका जाए?

महानता का आकलन करने के लिए सद्गुणों का भंडार, श्रेष्ठ कर्म, सादगीपूर्ण व्यक्तित्व, आध्यात्मिक जीवन जैसे अनेक पहलू हैं। किसी व्यक्ति के व्यवहार, कर्म, वाणी, रहन-सहन और स्वभाव ही उसके व्यक्तित्व को मापने के पैमाने होते हैं। निश्चित रूप से महानता हर किसी के भीतर नहीं होती, लेकिन इसे अर्जित किया जा सकता है।

महान चिंतक श्री राम शर्मा आचार्य ने कहा है कि “दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे परोपकारी रहे हैं। महान व्यक्ति मानवता के प्रति संवेदनशील होते हैं। वे दूसरों के दुःख-दर्द को महसूस करते हैं और उसे दूर करने का हर संभव प्रयास करते हैं।” स्वार्थी व्यक्ति केवल अपने लिए जीता है, लेकिन परोपकारी व्यक्ति पूरी मानवता के विकास के लिए समर्पित रहता है। इसी समर्पण और सेवा से वह श्रेष्ठ बन जाता है।

महान व्यक्तियों में त्याग की भावना होती है। यह भावना उनकी अनासक्ति को दर्शाती है। इस संसार में लोग अपनी आसक्तियों के कारण किसी भी चीज़ का त्याग आसानी से नहीं कर पाते हैं। लेकिन, जिनके भीतर किसी वस्तु के प्रति आसक्ति नहीं होती, वे उसे सहजता से त्याग देते हैं। महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर जैसे महापुरुषों ने अपना वैभवपूर्ण जीवन त्यागकर लोककल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो गए।

महान व्यक्तियों में अहंकार नहीं होता। उनमें विनम्रता होती है। उनकी वाणी में मिठास होती है, किसी भी प्रकार की कटुता नहीं होती। वे ईर्ष्या-द्वेष से मुक्त रहते हैं और सभी के प्रति आत्मीयता का भाव रखते हैं। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, तुलसीदास, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष अपने श्रेष्ठ कर्मों, सद्गुणों और तपस्या के कारण आकाशीय ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं।

महानता की सबसे बड़ी कसौटी परोपकार की भावना है। जितनी गहराई से कोई व्यक्ति परोपकारी होता है, वह उतना ही महान होता है।

महानता को प्राप्त करने के लिए हमें उन कमज़ोरियों पर काबू पाना होगा जो हमारे आत्मविकास में बाधा बनती हैं। सत्यवादिता महान व्यक्तियों का स्वाभाविक गुण है। संस्कृत कवि भर्तृहरि ने भी महानता को परिभाषित करते हुए लिखा है कि निंदा-प्रशंसा, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु जैसी परिस्थितियों में भी महान व्यक्ति अपना संतुलन नहीं खोते। वे स्थिर, शांत और धैर्यवान बने रहते हैं।

महानता कोई जन्मजात गुण नहीं है, बल्कि इसे तप, परिश्रम और श्रेष्ठ कर्मों से अर्जित किया जाता है। मानवता की सेवा, त्याग, धैर्य और सच्चाई ही किसी व्यक्ति को महान बनाते हैं। महानता प्राप्त करने के लिए आत्मविकास की ओर निरंतर प्रयास करना आवश्यक है।