इस महीने अगस्त में दो सुपरमून है। पहला एक अगस्त को था और दूसरा 30 अगस्त को है। चंद्रयान-3 भी 23 अगस्त की शाम को चंद्रमा की ऑर्बिट पर लैंड करेगा। क्या दोनों के बीच खास संबंध हो सकता हैं? जी हां इसके पीछे गहरा कनेक्शन है। जानें कैसे-
एक अगस्त को दिखने वाले सुपरमून की दूरी धरती से 3,57,530 किलोमीटर थी. इसके बाद दूसरा सुपरमून 30 अगस्त को धरती के और करीब आ जाएगा उसकी दूरी उस वक्त 3,57,344 किलोमीटर होगी।
सुपरमून दिखने का मतलब है कि उस वक्त चंद्रमा धरती के नजदीक है। इसे ब्लू मून भी कहा जाता है। इसी का फायदा चंद्रयान-3 को होगा। इसकी वजह से उसे कम यात्रा तय करनी पड़ेगी। इस वक्त चंद्रयान-3 288 किलोमीटर की पेरीजी और 3,69,328 किलोमीटर की एपोजी वाली कक्षा में यात्रा कर रहा है।
वैसे तो चंद्रमा पृथ्वी से 3.60 लाख किलोमीटर से चार लाख किलोमीटर की दूरी मेंटेन करता है। ऐसे में इसरो के वैज्ञानिकों ने ऐसा वक्त चुना जिस वक्त चंद्रमा धरती के नजदीक दो बार पहुंच रहा है। मतलब पृथ्वी और चंद्रमा की जितनी कम दूरी होगी उस वक्त चंद्रयान-3 को चंद्रमा पर लैंड कराना उतना किफायती होगा।
इसी चीज का वैज्ञानिकों ने फायदा उठाया है। चंद्रयान को इस वक्त 38,520 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से चांद की ओर भेजा जा रहा है। हर दिन इसकी रफ्तार कम की जा रही है। जिससे चंद्रयान-3 को चांद के नजदीक ऑर्बिट पकड़ सके।
चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षम शक्ति पृथ्वी की ग्रैविटी से छह गुना कम है। इसलिए चंद्रयान की रफ्तार भी कम करनी पड़ेगी। वरना वह चंद्रमा के ऑर्बिट को नहीं पकड़ पाएगा। यदि ऐसा हुआ तो चंद्रयान 3.69 किलोमीटर से वापस धरती की पांचवीं ऑर्बिट के पेरीजी यानी 288 किलोमीटर की दूरी कर 10 दिनों में वापस लौट जाएगा।
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