इस लेख में हम नये विषय के बारे मे जानेगें, वह हैं लर्निंग डिसेबिलिट, जो कि एक मेंटल डिसाडॅर हैं। इसका मतलब हैं कि कुछ सीखने या समझने में दिक्कत आना। कुछ सीखना एक सतत प्रक्रिया हैं लेकिन वह चिज सिखने या करने मे जरूरत से ज्यादा समय लगे तो ये लनिॅग डिसेबिलिट के सकेंत हो सकते हैं।
कई बार माँ-बाप इस समस्या को समझ नहीं पाते और समय से उसका निदान भी नहीं कर पाते। लनिॅग डिसेबिलिट की के शुरुआत मे बच्चे को बोलने में,लिखने में,पढने में,ध्यान केन्द्रित कर सुनने मे और शब्दों का उच्चारण करने मे परेशानी होती हैं।
लनिॅग डिसेबिलिट के क्या कारण हैं-
१.न्यूरोलाॅजिकल
भिन्नता-
दिमाग किसी भी सुचना को सही तरह से पासऑन या रिसीव नहीं कर पाता।
२.सिर पर चोट लग ने पर।
३.न्यूबाॅन बेबी का दिमाग पुरी तरह से विकसित न हुआ हो।
४. समय से पहले बच्चें का जन्म हुआ हो।
५.गर्भावस्था के समय अनुचित दवाई का उपयोग।
लनिॅग डिसेबिलिट से किन प्रक्रिया में कठिनाई दिखाई देती हैं-
१.इनपुट-श्रवण और दृश्य धारणा
२.एकीकरण- अनुक्रमण और संगठन
३.स्मृति ( कार्य को याद रखने की क्षमता)
४.आउट पुट- ( समझाने की क्षमता)
लनिॅग डिसेबिलिट के प्रकार
१. डिस्लेक्सिया –
जिसमे बच्चे को शब्दों को पढने में दिक्कत होती हैं।
२. डिस्ग्राफिआ-
इसमें बच्चा ठीक से लिख नहीं पाता।
३. डिस्कैलकुलिया –
इसमे बच्चे को गणित करने मे दिक्कत आती हैं।
४. ऑडिटरी प्रोसेसिंग डिसाडॅर-
आवाज को सुनने और अन्तर करने मे परेशानी होती हैं।
५. विजुअल प्रोसेसिंग डिसाडॅर –
इसमे बच्चा चित्रों और मानचित्र को समझ नही पाता हैं।
लनिॅग डिसेबिलिट को आमतौर बेकवर्ड चाइल्ड, स्लो लर्नर अथवा मानसिक मंदता समझ लिया जाता हैं।लनिॅग डिसेबिलिट में डाक्टर कि मदद ले सकते हैं,दवाई, थेरेपी का उपयोग करके हम बच्चों की मदद कर सकते हैं। स्कूल टीचर से बात करके स्टडी माॅडल, स्ट्रक्चर तैयार कर सकते हैं।लनिॅग डिसेबिलिट से हम बच्चो को कई हद तक बाहर निकल सकते है,और आगे बढनें मे उसकी मदद कर सकते हैं।
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