आज की टेक्नॉलॉजी ऐसी हो गई है कि अब इंसानों के लिए कुछ भी करना नामुमकिन नहीं रहा। फिर चाहे वह पानी में चलने वाली बात हो या आसमान में उड़ना। इतना ही नहीं इनसानों ने तो मौसम को भी अपने बस में कर लिया है। अब तो इंसान सूखे में भी बारिश बरसा सकता है। क्या हुआ सुनकर चौंक गए न!
अब आप सोंच रहे होंगे कि ये पद्धति तो विदेशों में चलन वाली होगी। लेकिन नहीं ये हमारे भारत में भी आ गई है। कुछ सालों पहले राजधानी दिल्ली में बढ़ते स्मॉग के चलते आर्टिफिशियल रेन या आर्टिफिशियल बारिश कराने की बात की जा रही थी। जाहिर सी बात है आपके मन में सवाल आया होगा कि आखिर यह आर्टिफिशियल बारिश या आर्टिफिशियल रेन होती क्या है? चलिए आज इसको विस्तार से समझते हैं। क्या होती है आर्टिफिशियल रेन (Artificial Rain)?
आर्टिफिशियल बारिश इस प्रक्रिया को करने के लिए हवाई जहाज के माध्यम से बादलों में कुछ केमिकल्स के घोल का इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि सिल्वर आयोडाइड इसे क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) भी कहते हैं। बारिश होगी या नहीं होगी यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपने सही बादल को चुना है। अब ये सही बादल कौन से होंगे।
आर्टिफिशियल रेनिंग के लिए या फिर आर्टिफिशियल बारिश को होने के लिए? बादलों में मॉइस्चर या पानी का होना आवश्यक है। अगर बादलों में पानी नहीं तो आर्टिफिशियल रेनिंग से बारिश नहीं कराई जा सकती। विश्व में काफी देशों ने आर्टिफिशियल रेनिंग का इस्तेमाल कर रखा है।
भारत में भी आईआईटी कानपुर ने आर्टिफिशियल बारिश कराने की कोशिश की है। इस क्रम में आईआईटी कानपुर ने कुछ ट्रायल किए हैं। ये ट्रायल छोटे एयरक्राफ्ट के जरिए किए गए हैं। कुछ में बारिश हुई और कुछ में सिर्फ बूंदाबांदी ही हुई। अब आपके मन में भी ये सवाल आया होगा कि अगर आर्टिफिशियल बारिश कराई जा सकती है तो देश में जगह जगह सूखे की समस्या क्यों है?
क्लाउड सीडिंग एक स्थाई हल नहीं है। हां, लेकिन स्मॉग के दौरान ये काफी कारगर साबित हो सकता है और पॉल्यूशन को कम करने में मदद करता है। इसका अधिकतम असर इस बात पर भी निर्भर करता है कि आर्टिफिशियल बारिश कराने के बाद हवा की गति कैसी है इसलिए इसका इस्तेमाल सिर्फ आपात स्थिति में ही किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के लिए बादलों के मूवमेंट का सही आकलन होना भी बहुत जरूरी है। वरना बारिश वहां नहीं होगी, जहां आप चाहते हैं।
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