लंबी वक्त से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठती आई है। हालही में NDA में विलय हुई कई पार्टियों ने इस मांग का समर्थन किया था। उनका कहना था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना ही चाहिए। इस मांग को लेकर आज सारी तस्वीरें साफ हो गई है।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने सोमवार को कहा कि अंतर-मंत्रालयी समूह (आईएमजी) की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। इससे नीतीश कुमार की जनता दल (यू) को बड़ा झटका लगा है, जो भाजपा की प्रमुख सहयोगी है।
झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद रामप्रीत मंडल को लिखित जवाब में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा, “राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) द्वारा पूर्व में कुछ राज्यों को योजना सहायता के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया था, जिनकी कई विशेषताएं ऐसी थीं, जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता थी।
इन विशेषताओं में शामिल हैं
(i) पहाड़ी और कठिन भूभाग,
(ii) कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा,
(iii) पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक स्थान,
(iv) आर्थिक और ढांचागत पिछड़ापन और
(v) राज्य वित्त की गैर-व्यवहार्य प्रकृति।”
मंत्री ने कहा, “यह निर्णय ऊपर सूचीबद्ध सभी कारकों और राज्य की विशिष्ट स्थिति के एकीकृत विचार के आधार पर लिया गया था। इससे पहले, विशेष श्रेणी के दर्जे के लिए बिहार के अनुरोध पर एक अंतर-मंत्रालयी समूह (आईएमजी) द्वारा विचार किया गया था, जिसने 30 मार्च 2012 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। आईएमजी इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मौजूदा एनडीसी मानदंडों के आधार पर, बिहार के लिए विशेष श्रेणी के दर्जे का मामला नहीं बनता है।”
लंबे समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रही जदयू ने संसद सत्र से पहले रविवार को सर्वदलीय बैठक में अपनी मांग दोहराई थी।
भाजपा को लोकसभा चुनाव में 240 सीटें मिलीं, जो बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों से कम है। उसे जेडी(यू) और तेलुगु देशम पार्टी के समर्थन की जरूरत है, जिनके निचले सदन में 28 सदस्य हैं। जेडी(यू) के अलावा, चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी ने भी आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जे की मांग की है, जिसे 2014 में विभाजित कर तेलंगाना के रूप में एक नया राज्य बनाया गया था।
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