31-08-2023
आज विश्व की प्राचीन भाषा संस्कृत का उत्सव दिन है।आज श्रावणी पूर्णिमा का दिन विश्व संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है।भारतीय प्राचीन भाषा संस्कृत है।इसी ने विश्व की भाषाओं के उद्भव में प्रमुख योगदान दिया है।आज भी संस्कृत के कई शब्द इन भाषाओं की शोभा है।संस्कृत हमारी देव भाषा है।ऋषि मुनियों ने वेद पुराण सभी संस्कृत में ही लिखे है।कहते है,मातृभाषा मां है,अन्य भाषा मौसी है, लेकिन संस्कृत तो नानी है।हर वर्ष श्रावणी पूर्णिमा का दिन विश्व संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है।चूंकि यह हिंदू पंचांग की तिथि अनुसार होता है,अतः तारीख बदलती रहती है।आज के दौर में जहां संस्कृत भाषा का उपयोग कम होता जा रहा है, ऐसे के इसके प्रचार प्रसार की अधिक आवश्यकता है।संस्कृत भाषा व्याकरण,अकारिकी की जटिल प्रणाली के साथ अत्यधिक विभक्तिपूर्ण भाषा है।यह इंडो आर्यन भाषा की जननी है। 3500 साल से भी अधिक प्राचीन भाषा है,संस्कृत।
भारतीय शिक्षा मंत्रालय ने सन 1969 में श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस मनाना तय किया। प्राचीन काल में तपोवन में श्रावणी पूर्णिमा से पौष पूर्णिमा तक अध्ययन होता था। उस वक्त तपोवन में ही रहते बच्चो को संस्कृत में ही पढ़ाया जाता था।
आज विश्व संस्कृत दिवस पर भारत उन दो गांवों का उल्लेख आवश्यक है, जहां बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी रोजमर्रा जीवन में संस्कृत भाषा ही बोलते है। एक गांव है, कर्नाटक से 30 किलोमीटर दूर तुंग नदी के किनारे स्थित मट्टूर गांव। करीब 50 साल पहले पंजावर मठ के स्वामी यहां पधारे और लोगो को उन्होंने संस्कृत का महत्व समझाया,तब से इस गांव ने बोलचाल की भाषा के रूप में संस्कृत को अपना लिया।आज यहां पर बच्चा हो या जवान,पुरुष हो या स्त्री सभी संस्कृति में ही बात करते है।ऐसा ही दूसरा गांव है,मध्य प्रदेश के राजगढ़ के पास आया झिरी गांव।वर्ष 2002 में यहां आई सामाजिक कार्यकर विमला तिवारी ने लोगो को देव भाषा संस्कृत की समझ दी।तबसे यह गांव भी पूर्णतया संस्कृत भाषी हो गया है।मजदूर से लेकर मालिक ,बच्चे से लेकर बूढ़े और स्त्री पुरुष सभी संस्कृत ही बोलते है।इन दोनो गांव में जीवित है, आज भी संस्कृत भाषा। गुजरात के कच्छ से प्रकाशित कच्छ।मित्र अखबार आज संस्कृत में छापा गया है।
इन्ही की तरह देश में संस्कृत का व्याप बड़े इसी उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है।
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