हमारा देश त्योहारों का देश है। यहां हर प्रकार के त्यौहार हैं। उसी में से एक है गुजरात का मुख्य त्यौहार “उत्तरायण”। पतंग, फिरकी, उंधियू, पूरी, जलेबी, ठंडी-ठंडी मीठी-मीठी हवाओं का त्यौहार। यह सूरज की दिशा बदलने की ख़ुशी में मनाया जाता है। इससे यह पता चलता है कि अब शरद ऋतू का समापन और ग्रीष्म ऋतू का आगमन हुआ है। यह त्यौहार बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। 1 महीने पहले से ही उत्तरायण की सारी तैयारियां शुरू हो जाती है। लोग पतंग उड़ाना, मिठाईयां खरीदना, उंधियू बनाने की तैयारी करना शुरू कर देते हैं।
लेकिन, इस साल उत्तरायण का त्यौहार थोड़ा ठंडा पड़ गया। और पिछले कई सालों से यह त्यौहार ठंडा ही पड़ रहा है। इसकी कई सारी वजह है। जिनमे से एक वजह है परिवारों की बढ़ती दूरियां। परिवार में आजकल लोग आपस में बात कम करते हैं और अपने आप में ज़्यादा रहते हैं जिससे दूरियां बढ़ती जा रही है। इस वजह से लोग आपस में मिलके त्यौहार नहीं मनाते।
दूसरी वजह है कि यह नयी पीढ़ी आत्मुग्ध हो गयी है। इनको अपने आप में रहना ज़्यादा पसंद आने लगा है। इस कारण यह बस त्यौहार के दिन आते हैं, छत पे जाकर दो चार पतंग उड़ाके वापस चले जाते है।
एक और वजह है बच्चों का अपनी संस्कृति से वाकिफ नहीं होना। इसमें सबसे बड़ा हाथ सोशल मीडिया का है। आजकल बच्चों को केवल मोबाइल और सोशल मीडिया चाहिए। और मां बाप भी उन्हें फ़ोन दे कर चले जाते है। जिसके कारण बच्चे बस मोबाइल से ही खेलते रहते हैं और अपने घरों से बाहर नहीं निकलते। इससे न तो बच्चों को जानकारी मिलती है कि यह त्यौहार क्यों मनाया जाता है, और न ही उन्हें प्रोत्साहन मिलता है जिससे वह ख़ुशी से उत्तरायण मना सके।
आजकल त्योहारों में घूमने कि सुविधाएं इतनी बढ़ गयी है कि लोग अपने घरों में त्यौहार मनाने के बजाये घूमने चले जाते है। इससे त्यौहार के मौके पर शहर खाली-खाली लगता हैं और आसमान सूना रहता है। इस वजह से भी उत्तरायण की मान्यता और उत्साह कम हो गया है।
इन्ही कुछ वजहों के कारण उत्तरायण काफी सूनी सूनी जा रही है। इसलिए बोलते हैं की अपनी संस्कृति और सभ्यता को कभी भूलना नहीं चाहिए। उससे हमेशा जुड़े रहना चाहिए। चाहे कितने भी बदलाव आ जाए अपने जीवन में, किन्तु त्योहारों को मानाने के तरीकों में बदलाव नहीं आना चाहिए। त्यौहार हमारी संस्कृति है, और उन्हें सही तौर तरीकों से मनाना संस्कृति की रक्षा। “धर्मो रक्षति रक्षितः।“
परिवारों के टूटने की वजह से त्योहारों का आनंद खत्म हो रहा है, तो हमें परिवारों को जोड़के रखना चाहिए। जैसे 5 उंगलियां मिलके ही एक मुट्ठी बनती है। इसका मतलब है कि परिवार एक होने से परिवार की ताकत बढ़ती है। इसलिए आप अपने परिवार वालों से करीबियां बढ़ाएं। बच्चे तो हमारे देश का भविष्य होते हैं। उन्हें हमारी संस्कृति, हमारे त्योहारों के बारे में जानकारी होनी ज़रूरी है। तो परिवार के बढ़ों का फर्ज बनता है कि वो बच्चों को उनके त्योहारों का महत्व बताएं।
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