उत्तराखंड के उत्तरकाशी में भूकंप के झटके लगातार महसूस किए जा रहे हैं।पिछले आठ दिनों में उत्तरकाशी की भूमि छह बार भूकंप के झटकों से डोल चुकी है।हालांकि, गनीमत यह है कि भूकंप से किसी प्रकार के नुकसान की कोई जानकारी नहीं मिली है। बीते गुरुवार शाम को भी जनपद में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। लगातार आ रहे भूकंप के झटकों ने लोगों में दहशत पैदा कर दी है
लोगों में खौफ..
उत्तरकाशी में आ रहे लगातार भूकंप ने साल 2013 की केदारनाथ त्रासदी की याद दिला दी है। लोगों में डर पैदा हो गया है कि कहीं ये झटके किसी बड़ी तबाही के संकेत तो नहीं दे रहे हैं।वहीं, शुक्रवार को आए भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 2.7 मापी गई। इसका केंद्र जमीन से 5 किलोमीटर की गहराई में था।आठ दिन में…दहली धरतीराष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (एनसीएस) के अनुसार उत्तरकाशी की धरती मात्र आठ दिन में छह बार कांप चुकी है। भूकंप के लिहाज से उत्तराखंड बेहद संवेदनशील क्षेत्र है।साल 2013 में आए भूकंप ने बड़ी तबाही मचाई थी।उत्तरकाशी में लगातार भूकंप की घटनाओं ने एक अजीब सा लोगों में डर पैदा कर दिया है। इस साल उत्तरकाशी में सबसे पहले 24 और 25 जनवरी को भूकंप के झटके महसूस किए गए। उसके बाद 29, 30 और 31 जनवरी को यहां की धरती कांपी थी।
क्या बोले वैज्ञानिक?
उत्तरकाशी में एक के बाद एक रिकॉर्ड किए जा रहे भूकंप को लेकर वैज्ञानिक भी अलर्ट मोड में आ गए हैं।वैज्ञानिक इसके एनालिसिस में जुटे हुए हैं।वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के डायरेक्टर विनीत गहलोत से जब जानना चाहा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, तो उन्होंने कहा कि हिमालय में आम तौर पर किसी एक इलाके में इस तरह एक के बाद एक झटके आते रहते हैं, इसे स्वाम कहा जाता है।
स्वाम के बाद बड़े भूकंप का खतरा
उन्होंने आगे कहा कि हिमालय में ऐसा देखने को नहीं मिला, लेकिन कई जगह स्वाम के बाद बड़े भूकंप भी देखे गए हैं। जब उनसे पूछा कि क्या छोटे-छोटे भूकंप आने वाले बडे भूकंप का संकेत हैं, इस पर गहलोत ने कहा कि ऐसा हो भी सकता है, लेकिन ये जरूरी भी नहीं है। उत्तराखंड हिमालय में पश्चिमी नेपाल तक सेसमिक गैप बना हुआ है, खासकर कुमाँउ रीजन में, लिहाजा यहां बड़ा भूकंप आने की पूरी पूरी संभावना बनी हुई है।कुदरत की विनाश लीला ने मचाया था तांडव
साल 2013 में उत्तराखंड में कुदरत की विनाशलीला ने कोहराम मचाया था। इस महाप्रलय को याद कर लोगों की रूह कांप जाती है। 16 और 17 जून 2013 को प्रकृति ने ऐसा कहर बरपाया था कि उसमें अनेक जिंदगियां तबाह हो गई थीं। जब प्रकोप ने पहाड़ तक जाने वाली तमाम सड़कों को उखाड़ फेंका था। आलम यह था कि आपदा में बिछड़े अपनों को ढूंढने के लिए देश के कोने-कोने लोग से पहाड़ पर पहुंचने की कोशिश कर रहे थे और उसके कदम तीर्थनगरी में आकर ठहर जाते थे। वजह थी इससे आगे सड़कें पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी थीं।
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