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जज के बंगले में 15 करोड़ कैश मिलने पर बवाल ; भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे जस्टिस वर्मा, जांच पर उठे सवाल

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले से 15 करोड़ रुपये कैश मिलने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस घटना के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने शुक्रवार को अपनी आंतरिक जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को सौंप दी है। अब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम इस मामले पर आगे की कार्रवाई करेगा।

2018 में भी लगे थे गंभीर आरोप

यह पहली बार नहीं है जब जस्टिस वर्मा का नाम विवादों में आया है। 2018 में गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल में 97.85 करोड़ रुपये के घोटाले के मामले में उनके खिलाफ सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की थी। उस समय जस्टिस वर्मा कंपनी के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने इस जांच को बंद कर दिया था।

आग बुझाने के दौरान कैश बरामद

14 मार्च को होली की रात लुटियंस दिल्ली स्थित जस्टिस वर्मा के बंगले में आग लग गई थी। दिल्ली फायर सर्विस ने मौके पर पहुंचकर आग पर काबू पाया, लेकिन इस दौरान बंगले से 15 करोड़ रुपये कैश मिलने की खबर सामने आई। फायर सर्विस चीफ अतुल गर्ग ने उन खबरों को खारिज कर दिया, जिनमें दावा किया गया था कि उन्होंने कैश न मिलने की पुष्टि की थी।

बार काउंसिल और न्यायपालिका में असंतोष

दिल्ली हाईकोर्ट बार काउंसिल के सदस्यों ने इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि जस्टिस वर्मा के इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर का इस मामले से कोई संबंध नहीं है। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इस ट्रांसफर पर कड़ी आपत्ति जताई है।

एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा, “अगर किसी आम आदमी के घर से इतना कैश मिलता, तो उसे तुरंत जेल भेज दिया जाता। जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट में पारदर्शिता पर सवाल

सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि कॉलेजियम को इस मामले की पूरी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। उन्होंने कहा, “भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जज भी कार्रवाई से अछूते नहीं हैं।”

राजनीतिक बयानबाजी तेज

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने संसद में इस मुद्दे को उठाते हुए न्यायिक जवाबदेही की मांग की है। वहीं, भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सवाल उठाया कि 2012-13 में यूपी के मुख्य स्थायी अधिवक्ता रहे जस्टिस वर्मा के कार्यकाल को लेकर अखिलेश यादव से सवाल क्यों नहीं किए जा रहे।

निष्पक्ष जांच ही समाधान

यह मामला सिर्फ एक न्यायाधीश पर लगे आरोपों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे न्यायपालिका तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है। यदि आरोप सत्य साबित होते हैं, तो यह न्यायिक प्रणाली में मौजूद खामियों को उजागर करेगा। निष्पक्ष और पारदर्शी जांच ही इस प्रकरण का एकमात्र समाधान हो सकती है।

न्यायपालिका में किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार आम आदमी के विश्वास को चोट पहुंचाता है। जस्टिस वर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट की निष्पक्षता और पारदर्शिता की परीक्षा होगी। यह जरूरी है कि जांच के नतीजे सार्वजनिक किए जाएं, ताकि देश की जनता को सच्चाई का पता चल सके।