भारत के संसद में इन दिनों एक तीव्र राजनीतिक विवाद उभर कर सामने आया है। शीतकालीन सत्र के 18वें दिन, अंबेडकर के सम्मान को लेकर राज्यसभा और लोकसभा में जबर्दस्त हंगामा हुआ। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिनका कहना था कि अगर कांग्रेस अंबेडकर का नाम जितनी बार लेती, उतनी बार अगर वे भगवान का नाम लेते तो स्वर्ग में जगह मिलती। गृह मंत्री के इस बयान पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने नाराजगी जताई और संसद में ‘जय भीम’ के नारे लगाए, जिसके बाद दोनों सदनों की कार्यवाही कुछ समय के लिए स्थगित कर दी गई।
कांग्रेस नेताओं ने इस बयान को बाबा साहेब अंबेडकर और उनके द्वारा बनाए गए संविधान का अपमान बताया। कांग्रेस सांसद कुमारी शैलजा ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि “बाबा साहेब अंबेडकर का नाम लेना किसी अपराध से कम नहीं होना चाहिए” और उन्होंने इसे देश और संविधान का अपमान करार दिया। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अमित शाह का यह बयान यह संकेत देता है कि अंबेडकर का नाम लेना अपराध हो गया है और उनका इरादा बाबा साहेब के बनाए संविधान का विरोध करने का था।
दूसरी ओर, भाजपा ने इस विवाद का जोरदार तरीके से जवाब दिया। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि अंबेडकर के जीवनकाल में कांग्रेस ने उन्हें सम्मान नहीं दिया और उनके अपमान की कई घटनाएं हुईं। उन्होंने कहा, “कांग्रेस आज ढोंग कर रही है, अंबेडकर का नाम वोट बैंक के लिए लिया जा रहा है।” केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि उनका अपमान करने का इतिहास रहा है और आज वे बाबा साहेब का नाम ले रहे हैं।
इस मामले ने एक नई राजनीतिक बहस को जन्म दिया है, जिसमें अंबेडकर के योगदान, उनके सम्मान और संविधान के प्रति संवेदनशीलता को लेकर विभिन्न दलों के बीच गहरी दरारें देखने को मिल रही हैं।
यह मामला सिर्फ एक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे देश में अंबेडकर के विचारों और उनके योगदान के प्रति जागरूकता और सम्मान की आवश्यकता को फिर से उजागर करता है। बाबा साहेब अंबेडकर ने भारतीय समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को समानता, न्याय और अधिकार दिलाने के लिए जो संघर्ष किया, उसे कभी कम करके नहीं आंका जा सकता। इस विवाद में दोनों पक्षों का विरोध अपनी-अपनी राजनीतिक रणनीतियों का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इस बहस से यह जरूर साबित होता है कि हमारे समाज को अंबेडकर के योगदान का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।आखिरकार, अंबेडकर के नाम का उपयोग राजनीतिक फायदे के लिए करना, उनकी वास्तविक धरोहर और उनके द्वारा स्थापित संविधान के महत्व को भुला देने जैसा है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि बाबा साहेब के विचारों को सही संदर्भ में समझा जाए और उनकी दिशा में काम किया जाए, न कि केवल उनके नाम पर राजनीति की जाए।
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