अहमदाबाद के बोपल इलाके में एक 23 वर्षीय छात्र की हत्या ने न केवल शहर को हिलाकर रख दिया, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या हमें अपनी सुरक्षा और विश्वास को उन पर छोड़ना चाहिए, जिनसे हमारी सुरक्षा की उम्मीद होती है? इस हत्याकांड में आरोपी पुलिस कॉन्स्टेबल निकला, जो खुद ही कानून के रखवाले होने का दावा करता था।
मामूली विवाद से हत्या तक
घटना रविवार रात करीब साढ़े 10 बजे की है, जब यूपी के मेरठ निवासी प्रियांशु जैन, जो MICA कॉलेज में फाइनल ईयर का स्टूडेंट था, अपने दोस्त के साथ बुलेट पर कपड़े सिलवाने जा रहा था। बोपल फायर स्टेशन के पास प्रियांशु और आरोपी वीरेंद्र सिंह पढियार के बीच एक मामूली सा विवाद हुआ।
वीरेंद्र, जो कि अहमदाबाद के सरखेज पुलिस थाने में कॉन्स्टेबल के पद पर तैनात है, तेज़ रफ्तार में रॉन्ग साइड से आ रहा था। प्रियांशु ने वीरेंद्र को रुकने और साइड बदलने की सलाह दी, जिससे दोनों के बीच बहस हो गई। बहस इतनी बढ़ी कि वीरेंद्र ने अपनी कार से बाहर आकर चाकू निकाल लिया और प्रियांशु को सीने में घोंप दिया। इस हत्यारे ने फिर तुरंत अपनी कार लेकर मौके से फरार हो गया।
हत्या के बाद फरार हुआ आरोपी
घटना के बाद, प्रियांशु के दोस्त ने मदद के लिए आस-पास के लोगों से संपर्क किया, जबकि एक महिला राहगीर ने प्रियांशु को गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचाया। हालांकि, भारी खून बहने के कारण प्रियांशु की जान नहीं बचाई जा सकी। पुलिस ने बाद में प्रियांशु के दोस्त की मदद से आरोपी का स्केच तैयार किया और उसे ट्रैक करना शुरू किया। आरोपी वीरेंद्र सिंह ने हत्याकांड के बाद पंजाब भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया।
पुलिस कॉन्स्टेबल का हत्या में शामिल होना: क्या है संदेश?
इस मामले ने कई अहम सवाल उठाए हैं, खासकर उस व्यक्ति के बारे में जो खुद को समाज का रक्षक मानता है – एक पुलिस कॉन्स्टेबल। जब पुलिस व्यवस्था ही अपराध में लिप्त हो, तो आम नागरिक का क्या हाल होगा? यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि समाज में कानून-व्यवस्था का पालन करने वालों को भी कड़ी निगरानी में रखना जरूरी है।
प्रियांशु जैन की हत्या एक संवेदनशील मामला बन गई है। यह महज़ एक सड़क पर हुई बहस का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस मानसिकता का भी परिणाम था जिसमें एक पुलिसकर्मी का तर्क था कि उसकी रौब और ताकत से कोई भी उसे चुनौती नहीं दे सकता। एक तरफ वह पुलिस अधिकारी है, जिसे कानून का पालन करना है, दूसरी ओर वह किसी निजी विवाद को इतना बढ़ा देता है कि वह किसी की जान ले लेता है।
इस घटना ने यह साबित कर दिया कि यदि कानून के रखवाले ही अपराधी बन जाएं, तो समाज में असुरक्षा का माहौल बनना तय है। यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि ऐसे मामलों में केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हमें एक सशक्त नागरिक समाज की आवश्यकता है, जो अपने अधिकारों के लिए खड़ा हो सके।
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