Written by Arun Danayak
कुछ दिन पहले में श्री राजेश बादल को अपनी कृति “यायावर की चली कलम” भेंट करने गया था और जब घर लौटा तो उनकी कृति “शब्द सितारे” मेरे हाथ में थी । इस पुस्तक के माध्यम से श्री बादल ने भारत के ऐसे दस शब्द शिल्पियों की जीवनी के मोती पिरोए हैं, जिनसे हम सबका परिचय तो स्कूली दिनों से रहा है, पर उनकी जीवन गाथा के अनेक पहलुओं से, हम सब प्राय: अपरिचित ही रहे हैं ।
इस कृति में वर्णित वृंदावन लाल वर्मा, फणीश्वर नाथ रेणु, अमृता प्रीतम के उपन्यासों को पढ़ने का आनंद मैँ आज भी लेता रहता हूँ तो राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की पंचवटी, माखनलाल चतुर्वेदी की पुष्प की अभिलाषा हमने एक स्कूली विद्यार्थी के रूप में पढ़ी और रामधारी सिंह दिनकर की ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पढ़कर जाना कि भारत की मिली जुली समसामयिक संस्कृति, गंगा जमुनी तहजीब क्या है,उसकी ऐतिहासिक सांझी विरासत कैसी है ? श्री बादल के चुने हुए इन दस रचनाकारों में दुष्यंत कुमार भी हैं जिनकी गजल “कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो ” को दोहराए बिना राजनीतिज्ञों की आमसभा खत्म नहीं होती। शब्दों के इन चितेरों में खुशवंत सिंह भी हैं तो इंदौर से प्रकाशित होने वाली नई दुनिया के संपादक राजेन्द्र माथुर भी, जिनके सानिध्य में दस वर्षों तक लगातार रहकर श्री बादल ख्यातिलब्ध पत्रकार बने । पुस्तक का अंतिम अध्याय ऐसे महानायक को समर्पित है जिसने विदेश में जन्म लिया, हिन्दी को भारत में आकर सीखा और रामचरित मानस का गुणगान किया तथा हिन्दी अंग्रेजी शब्द कोश की रचना की । मेरा आशय फादर कामिल बुल्के से है ।
पुस्तक का प्रथम अध्याय बुंदेलखंड की प्रष्ठभूमि को लेकर लिखे गए अनेक ऐतिहासिक उपन्यासों के रचनाकार वृंदावनलाल वर्मा को समर्पित है । वर्मा जी के प्रपितामह महारानी झांसी की ओर से अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करते हुए शहीद हुए थे । आल्हा उदल के साथ साथ अपने प्रपितामह की वीरता भरी कहानियों को बालपन से ही सुनते सुनते वर्मा जी बड़े हुए और जब घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी वे उच्च अध्ययन हेतु ग्वालियर जाने लगे तो पिता पुत्र के बीच हुए संवाद का बहुत ही मार्मिक वर्णन श्री बादल ने किया है । राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त और ओजपूर्ण रचनाओं के रचयिता रामधारी सिंह दिनकर राज्य सभा के सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए गए थे। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गुप्त जी को इस हेतु मनाने की जिम्मेदारी उनकी मुँहबोली बहन महादेवी वर्मा को सौंपी और जब राष्ट्रकवि इसके लिए तैयार नहीं हुए तो प्रधानमंत्री स्वयं झांसी आए और गुप्त जी से सरकार के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने का अनुरोध किया और उनकी स्वीकृति प्राप्त करके ही दिल्ली वापस गए । इन दोनों महाकवियों ने राज्यसभा में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी और अनेक बहसों में सारगर्भित भाषण दिए, जब आवश्यकता महसूस की तो सरकार की कटु आलोचना भी की । सांसद के रूप में सरस्वती के उपासकों के योगदान को इस पुस्तक में लेखक ने बखूबी दर्शाया है । श्री बादल ने अमृता प्रीतम के जीवन को बहुत ही सुंदर शब्दों में उकेरा है और उनके जीवन में पति प्रीतम सिंह के अलावा आए दो प्रेमियों, साहिर लुधियानवी व इंद्रजीत उर्फ इमरोज के कारण इस अध्याय को ‘प्यार का झरना’ नाम दिया है। प्रेम के इस त्रिकोण पर श्री बादल लिखते हैं “ क्या आप रिश्तों के इस त्रिकोण की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें किसी से किसी का कोई रिश्ता नहीं था ,मगर वे रूह की गहराइयों तक जाने वाले एक तार से बंधे थे ।“ रचनाकारों को यश,मान-सम्मान व प्रतिष्ठा खूब मिलती है लेकिन गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए सरस्वती के साथ साथ लक्ष्मी का वरदान भी चाहिए। ‘शब्द सितारे’ में लेखक ने इन विसंगतियों की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया है । संभवतया पुस्तक में वर्णित नामों में खुशवंत सिंह ही ऐसी शख्सियत हैं जो खानदानी रईस थे, शेष रचनाकार तो इस द्वंद्व से आजीवन दो चार होते रहे पर उन्होंने अपनी कलम को कभी भी राजसत्ता या अर्थसत्ता के पास गिरवी नहीं रखा । वे टूटकर भले चाहे जीवन से हार गए पर झुके नहीं । जब भारत परतंत्र था तब वृंदावनलाल वर्मा, मैथिली शरण गुप्त, दिनकर, माखन लाल चतुर्वेदी आदि की कलम अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खूब चली और स्वतंत्र भारत में तो रेणु, दुष्यंत कुमार आदि ने राज सत्ता को सदैव चुनौती दी तो राजेन्द्र माथुर ने पत्रकारिता के क्षेत्र में निर्भीकता का परिचय दिया । श्री बादल ने हिन्दी साहित्य जगत के इन महान लेखकों के इन बलिदानों, उनके द्वारा सही गई प्रताड़ना और कष्टों को मार्मिक अंदाज में प्रस्तुत किया है । इस पुस्तक का महत्वपूर्ण अध्याय है ‘हिन्दी का बेटा’ जोकि फादर कामिल बुल्के को समर्पित है ।
बेल्जियम के निवासी की भाषा बेल्जियम डच थी पर रामचरित मानस ने उन पर ऐसा जादू किया कि वे भारत खिचे चले आए और फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में न केवल स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की वरन प्रोफेसर धीरेन्द्र वर्मा की सलाह पर राम कथा पर शोध ग्रंथ भी लिखा। किसी विदेशी द्वारा लिखा गया, राम कथा पर हिन्दी में यह पहला शोध ग्रंथ था । लेकिन इस शोध को मान्यता दिलाना भी आसान नहीं था । एक ओर विश्वविद्यालय प्रशासन तत्कालीन परंपराओं के अनुसार इस शोध को आंग्ल भाषा में प्रस्तुत किए जाने को लेकर जिद्द पर अड़ा था तो दूसरी ओर बाबा बुल्के भी भगवान राम पर लिखे गए अपने शोध ग्रंथ को किसी विदेशी भाषा में प्रस्तुत करने को तैयार नहीं थे । बात इतनी बढ़ी की प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के हस्तक्षेप की नौबत आ गई । फादर बुल्के की संघर्ष गाथा का प्रतीक यह सम्पूर्ण घटनाक्रम श्री राजेश बादल की कलम से बहुत ही सजीव बन पड़ा है । और शायद इसीलिए लेखक ने फादर बुल्के को ‘हिन्दी का बेटा’ कहकर अपना सम्मान दिया है ।
श्री राजेश बादल से मेरा परिचय कोई बहुत पुराना नहीं है तो नया भी नहीं है । अस्सी के दशक में उन्होंने मेरे गृह नगर पन्ना के हीरा श्रमिकों की व्यथा पर एक डाक्यूमेंटरी बनाई थी । तभी से मैं उनका मुरीद हूँ । वे साहित्यकारों के परिवार से आते है और उनके दादा श्यामसुंदर बादल ने ‘बुन्देली का फाग साहित्य’ रचकर बुन्देली लोक साहित्य का प्रथम शोध ग्रंथ बहुत पहले प्रस्तुत किया था । इस प्रकार पारिवारिक परंपरा , पत्रकार के रूप में अपनी लंबी पारी, राजेन्द्र माथुर जैसे गुरु का सानिध्य, टेलीविजन के जरिए समसामयिक विषयों पर प्रस्तुति और फिल्म निर्माण के अनुभवों व गहन अध्ययन के आधार पर हिन्दी जगत के महान साहित्यकारों पर उनकी यह पुस्तक ‘शब्द सितारे’ बहुत ही रोचक अंदाज, भाव प्रणव शैली और सरल भाषा में लिखी गई है । दो सौ चालीस प्रष्ठों में प्रख्यात साहित्यकारों की संघर्ष गाथा को समेटना उनके जीवन के अनछुए पहलुओं से पाठकवृन्द को परिचित कराना कोई आसान काम नहीं था । लेकिन श्री बादल ने अध्ययन व कल्पना के बेजोड़ मेल से इसे सार्थक रूप देने में सफलता पाई है । उनका लेखन पाठक को पूरा अध्याय अंत तक पढ़ने के लिए बांधे रखता है ।
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