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तुर्की संकट: सत्ता, विरोध और भारत के भू-राजनीतिक हित

तुर्की एक बार फिर उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। हाल ही में इस्तांबुल के मेयर और विपक्ष के प्रभावशाली नेता एकरेम इमामोग्लू की गिरफ्तारी ने देश में जबरदस्त विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है। इमामोग्लू पर भ्रष्टाचार और आतंकवादी संगठनों से संबंध रखने के आरोप लगाए गए हैं, लेकिन विपक्ष इसे राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन की सत्ता बचाने की चाल करार दे रहा है।

तुर्की में क्या हो रहा है?
इमामोग्लू की गिरफ्तारी के बाद इस्तांबुल, अंकारा और अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं।
एर्दोगन सरकार ने इसे “राष्ट्र विरोधी गतिविधि” बताकर कठोर दमन शुरू कर दिया है।
पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुई हैं, जिसमें सैकड़ों लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
इस्तांबुल विश्वविद्यालय ने इमामोग्लू की डिग्री रद्द कर दी है, जिससे उनकी राजनीतिक भविष्य पर संकट मंडराने लगा है।

क्या यह केवल तुर्की की समस्या है? नहीं!
तुर्की में होने वाले ये राजनीतिक घटनाक्रम पूरी दुनिया, खासकर भारत के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
1. तुर्की और भारत: कूटनीतिक खटास

तुर्की लंबे समय से पाकिस्तान का समर्थन करता आया है और कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधी बयानबाजी करता रहा है। राष्ट्रपति एर्दोगन कई बार यूएन में कश्मीर पर भारत की आलोचना कर चुके हैं, जिससे नई दिल्ली और अंकारा के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।

2. भारत-तुर्की व्यापार और रक्षा सहयोग

हालांकि, भारत और तुर्की के बीच द्विपक्षीय व्यापार संबंध काफी मजबूत हैं, खासकर फार्मा, टेक्सटाइल और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्रों में। भारत को यह देखना होगा कि तुर्की में राजनीतिक अस्थिरता कहीं व्यापार को नुकसान न पहुंचा दे।

3. भू-राजनीतिक समीकरण और भारत का स्थान

एर्दोगन के खिलाफ बढ़ते विरोध का मतलब यह हो सकता है कि तुर्की का सत्ता संतुलन बदले और नई सरकार भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए कदम उठाए।

यदि तुर्की में सत्ता परिवर्तन होता है, तो भारत को इसे अपने पक्ष में मोड़ने का अवसर मिल सकता है।

भारत की तटस्थ विदेश नीति इसे इस संघर्ष में एक कूटनीतिक बढ़त दिला सकती है।

क्या भारत को इस संकट पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए?

फिलहाल, भारत इस पूरे घटनाक्रम पर ‘वेट एंड वॉच’ नीति अपनाएगा। लेकिन अगर यह संकट गहराता है और तुर्की की आंतरिक राजनीति में बड़ा बदलाव आता है, तो नई दिल्ली को अपनी कूटनीतिक रणनीति को नए सिरे से गढ़ने की जरूरत होगी।

तुर्की में जो कुछ भी हो रहा है, वह न केवल वहां की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि इसके अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव भी होंगे। भारत के लिए यह एक अवसर हो सकता है कि वह तुर्की के साथ अपने संबंधों को नए तरीके से परिभाषित करे और अपने भू-राजनीतिक हितों को मजबूत करे।

तुर्की संकट से जुड़े आगे के घटनाक्रम पर भारत की नजर बनी रहेगी, क्योंकि इस अस्थिरता से दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व के समीकरण भी बदल सकते हैं।