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ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति भारत के लिए चुनौती या अवसर! जानें क्या पड़ेगा असर…

डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। कई महत्वपूर्ण राज्यों में ट्रंप को मिले वोटों ने उनके लिए राष्ट्रपति के तौर पर वापसी की है। इससे पहले ट्रंप साल 2017 से 2021 तक अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति रह चुके हैं। उनकी नीतियां पूरी दुनिया जानती है और भारत की नरेंद्र मोदी सरकार के पास ट्रंप से कई मोर्चों पर डील करने का अनुभव है।

अमेरिकी चुनाव में ट्रंप की जीत के साथ ही भारत के साथ उनके संबंधों को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। आइए जानते हैं, ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति बनने के बाद भारत पर क्या असर पड़ सकता है।

1. भारत के निर्यात पर टैरिफ बढ़ने की संभावना

ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने का असर भारत के निर्यात पर देखने को मिल सकता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि ट्रंप भारत को टैरिफ किंग यानी अमेरिकी वस्तुओं पर ज्यादा टैक्स लगाने वाला देश कहते हैं। ट्रंप ने 17 सितंबर को चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि भारत आयात शुल्क को लेकर काफी सख्त है। अगर मेरी सरकार आती है तो हम इस स्थिति को बदल देंगे और भारत पर टैरिफ ड्यूटी कम करने का दबाव डालेंगे।’

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर राजन कुमार के मुताबिक, अगर भारत अमेरिकी सामानों पर टैरिफ कम नहीं करता है तो ट्रंप भारतीय सामानों पर टैरिफ बढ़ा भी सकते हैं। जिससे अमेरिका में भारतीय सामान महंगा हो सकता है। जिसका सीधा असर भारत के निर्यात पर पड़ेगा।

2. रोजगार के लिए H1-B वीजा पर कड़े नियम

ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में H1-B वीजा नियमों में बदलाव किया था। नए नियमों में विदेशी श्रमिकों का वेतन अमेरिकी श्रमिकों के समान रखा गया, लेकिन प्रवासी श्रमिकों पर कई शर्तें भी लगाई गईं। इससे ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान H1-B वीजा आवेदनों को अस्वीकार करने की दर में वृद्धि हुई। नियमों की वजह से वीजा प्रक्रिया पूरी करने का समय भी बढ़ गया।

2023 में कुल 3.86 लाख अप्रवासियों को H1-B वीजा दिया गया, जिनमें से 2.79 लाख भारतीय थे। अब ट्रंप वापस आ गए हैं और पहले ही H1-B वीजा को अमेरिकी कार्यबल के लिए बहुत खराब बता चुके हैं। अगर ट्रंप ऐसे नियम और शर्तें दोबारा लागू करते हैं तो सबसे बड़ा असर भारतीय आईटी सेक्टर, वित्त और अन्य पेशेवरों पर पड़ेगा जो अमेरिका में नौकरियों के लिए एच-1बी वीजा पर निर्भर हैं।

3. सैन्य और सुरक्षा सहयोग

इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (iCET) और GE-HL जैसे रक्षा सौदों ने भारत और अमेरिका के बीच सैन्य संबंधों को मजबूत किया है। यह डील बाइडेन के कार्यकाल में हुई थी। उम्मीद है कि ट्रंप की वापसी के बाद भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंध और बेहतर होंगे।

चीन है बड़ा कारण: चीन के प्रभाव को रोकने के लिए ट्रंप के पिछले कार्यकाल के दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्वाड गठबंधन मजबूत हुआ था। चीन को रोकने के लिए भारत के साथ अमेरिकी सैन्य समझौतों का यह सिलसिला भविष्य में भी जारी रह सकता है। उम्मीद है कि ट्रंप के अगले कार्यकाल में हथियारों की खरीद, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त सैन्य अभ्यास में तेजी आ सकती है।

4. पाकिस्तान, कश्मीर और बांग्लादेश पर नीति

ट्रंप ने आतंकवाद पर हमेशा कड़ा रुख अपनाया है, जिससे भारत को पाकिस्तान के खिलाफ समर्थन मिल सकता है। ट्रंप ने पहले भी कहा था कि कश्मीर मुद्दा भारत का आंतरिक मामला है और हस्तक्षेप से इनकार किया। साथ ही, ट्रंप ने बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार की निंदा की थी, जो भारतीय हितों के अनुकूल हो सकता है।

जब कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया तो ट्रंप ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला हैऑ।छ उधर, कमला हैरिस ने कहा, ”हमें कश्मीरियों को याद दिलाना होगा कि वे दुनिया में अकेले नहीं हैं। हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं। अगर स्थिति बदलती है तो हस्तक्षेप की जरूरत होगी.”

ट्रंप ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार की निंदा की। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा हो रही है। उन पर हमले हो रहे हैं, उन्हें लूटा जा रहा है. मैं इसकी निंदा करता हूं।

5. दुनिया पर क्या होगा असर?

विशेषज्ञों के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनते ही उन्हें रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास युद्ध जैसी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। ट्रंप पहले ही सत्ता के जरिए शांति लाने की बात कह चुके हैं। ट्रंप पहले भी रूस-यूक्रेन युद्ध पर बयान देते रहे हैं। एक इंटरव्यू के दौरान ट्रंप ने कहा कि-

वहीं, इजराइल-हमास युद्ध पर ट्रंप का रुख थोड़ा अलग रहा है। ट्रंप ने गाजा में जल्द से जल्द युद्ध खत्म करने की बात कही है। हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि वे युद्धविराम के ज़रिए युद्ध ख़त्म करना चाहते हैं या हमास को ख़त्म करके।

ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान कई मौकों पर खुलकर इजराइल का समर्थन किया है। उन्होंने तेल अवीव की जगह येरुशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने की बात कही। इसके साथ ही उन्होंने अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से येरूशलम स्थानांतरित कर दिया। इसके अलावा ट्रंप ने सीरिया के गोलान हाइट्स को इजरायली क्षेत्र के रूप में मान्यता दी।