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भित्तिचित्रों का खजाना “भित्तिचित्रों में रामायण का कलासंधान”

प्रसिद्ध कलाकार प्रदीप झवेरी ने, रामायण को प्राचीन काल से देश भर के मंदिरों एवं गुफाओं में उकेरे गए भित्तिचित्रों की संशोधनात्मक पुस्तक “भित्तिचित्रों में रामायण का कलासंधान” लिखी है। मूल अंग्रेजी और गुजराती अनुदित पुस्तक का प्रकाशन कलातीर्थ द्वारा किया गया है। मूल रूप से यह पुस्तक प्रदीप झवेरी ने अंग्रेज़ी में लिखी है, जिसका गुजराती अनुवाद विमला ठक्कर ने किया है। यह पुस्तक किसी खजाने से कम नहीं है।

महर्षि वाल्मीकि ,तुलसीदास सहित कई ज्ञानियों ने रामायण लिखी है।जिसमे यह ऐसा श्लोक है जिसमे में पूरी रामायण आ जाती है।

“आदौ राम तपोवनादि गमनम् हत्या मृगम कांचनम,
वैदेहि हरणम जटायु मरणम् ,सुग्रीव संभाषणम।
बाली निर्दलम समुद्र तरणम,लंकापुरी दाहनम,
पश्चाद रावण,कुंभकर्ण हननम एतद्धि रामायण म।”

आज सैंकड़ों सालों के बाद भी रामायण की लोकप्रियता जस की तस है। रामायण की कथा साहित्य, नृत्य, नाट्य, गीत संगीत ,स्थापत्य, चित्रों जैसे विविध कला माध्यमों में प्रस्तुत की गई है ।और सिलसिला जारी है ।भित्तिचित्रों में भी इस कथा का निरुपण हुआ है। देश के प्राचीन भव्य मंदिर से लेकर गृहमंदीर तक भित्तिचित्रों की परंपरा दिखाई देती है। यह कला, कलाकारों से लेकर परिवार की खुशी चाहती गृहिणी तक पहुंची है। भित्तिचित्रों की शुरुआत आदिकाल से ही हो चुकी है ,जिसका उदाहरण गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र है। यह एक ऐसी दृश्यकला है, जिसके द्वारा विचार, भाव को प्रदर्शित किया जा सकता है।आदिवासी इस कला का भरपूर उपयोग करते हैं ।उनके लिए दिवार एक कैनवास है। यह कलाशास्त्र के बदले रीति रिवाज, संस्कार, कथा, को प्राधान्य देती है।

पेशे से एक उद्योगपति लेकिन दिल से कलामर्मज्ञ प्रदीप झवेरी को भित्तिचित्रों से इतना लगाव हो गया कि उन्होंने अपने अभ्यास के अंतर्गत “भित्तिचित्रों में रामायण कलासंधान” संबंधित विशिष्ट दस्तावेजीकरण किया ।उनके इस कार्य के लिए कलातीर्थ द्वारा कलाग्रंथ प्रकट किया गया है ।प्रदीप भाई मूलतः कच्छ में मुंद्रा के निवासी है। फिलहाल वे मुंबई में रहते हैं ।वे स्थापत्य कला, शिल्प कला, और चित्रकला से भी जुडे है। भित्तिचित्रों की उनके द्वारा ली गई तस्वीरें उनकी फोटोग्राफी कौशल का बेहतरीन नमूना है।”भित्तिचित्रों में रामायण कलासंधान” पुस्तक में उन्होंने चित्रात्मक वर्णन की विस्तृत जानकारी दी है। रामायण की लोकप्रियता केवल भारत में ही नहीं वरन इंडोनेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया, मलेशिया, वियतनाम, हिंदुत्व बाहुल्य वाले देशों में भी है ।यहां के साहित्य, स्थापत्य,और भित्तिचित्रों में रामायण का विशेष प्रभाव है। वाल्मिकी रामायण में सात कांड को 24,000 श्लोक में लिखा गया है। इसकी सबसे प्राचीन प्रति 11 वीं सदी की मानी जाती है।कथा तो निश्चित समय में समाप्त हो जाती है,लेकिन भित्तिचित्र में उकेरी गई कथा सदा जीवंत रहती है। इन चित्रों में दशरथ यज्ञ, राम जन्म, सीता स्वयंवर, विवाह, वनवास, राम रावण युद्ध, रावण की मृत्यु, और राम राज्य जैसी प्रमुख घटनाएं उकेरी गई है ।इन सभी घटनाओं को मंदिरों की दीवारों पर ही नहीं वरन जनमानस को भी प्रभावित किया है।

इनमें समय काल अनुसार आते बदलाव, इनको बनाने में उपयुक्त होती सामग्री पर प्रदीप झवेरी नेखोज की है। उन्होंनेकच्छ के अंजार में स्थित मेकमोर्ड बंगलो, बीबर का राम मंदिर, वडोदरा के खंडोबा मंदिर,भिलापुर के सर्वेश्वर महादेव, चांदोद के काशी विश्वेश्वर मंदिर, काथोल गांव के भित्तिचित्रों का अध्ययन किया है ।इसके साथ राजस्थान, उड़ीसा, महाराष्ट्र के मंदिरों का भी उन्होंने अभ्यास किया है। यह पुस्तक भित्तिचित्रों का खजाना है। प्रदीप झवेरी ने इस पुस्तक को भित्तिचित्रों को समर्पित किया है। “भित्तिचित्रों में रामायण का कलासंधान” पुस्तक में प्रदीप झवेरी द्वारा किए गए संशोधन का बेहतरीन स्वरुप है।