भारत में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, और यह विश्वास पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे समाज में बस गया है कि शादी सात जन्मों तक निभाने का वादा है। लेकिन क्या होगा अगर यह सात जन्मों का बंधन सात साल भी न टिके? क्या होगा जब पति-पत्नी के बीच रिश्ते की दीवार दरारों से भर जाए और तलाक तक की नौबत आ जाए? आज के समय में इस सवाल पर गंभीरता से विचार करना उतना ही जरूरी है, जितना कभी नहीं था।
हाल ही में अतुल सुभाष की कहानी ने पूरे देश को झकझोर दिया। एक ऐसा युवक, जिसकी जिंदगी झूठे आरोपों और कानूनी लड़ाई की आग में जलकर खत्म हो गई।उनकी पत्नी द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों ने उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। अतुल की यह दुखद कहानी न सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी है, बल्कि यह उस समाज और कानूनी व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है, जो पुरुषों की आवाज़ को अक्सर अनसुना कर देती है। 2022 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, 4200 पुरुषों ने शादी से जुड़े झूठे आरोपों के कारण आत्महत्या की। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है, लेकिन यह एक कड़वी हकीकत है जिसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
हमारे समाज में सदियों से एक स्टीरियोटाइप है: “Men will be men” या “All men are dogs”, और इस मानसिकता ने पुरुषों को हमेशा कठघरे में खड़ा किया है। महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर बनाए गए कानूनों ने ऐसा माहौल पैदा किया है, जहां अब पुरुषों को सशक्त बनाने की आवश्यकता महसूस हो रही है। यह विडंबना है कि समानता लाने के नाम पर बनाए गए कानून अब कई मामलों में पुरुषों के लिए शोषण का कारण बन गए हैं।
तलाक के बाद महिलाओं को पति से अलिमनी (Alimony) मिलती है, लेकिन यह एक ऐसा रास्ता बन गया है, जहाँ बिना किसी ठोस आधार के भी पुरुषों से पैसे ऐंठे जा सकते हैं। कई मामलों में यह देखा गया है कि निर्दोष पुरुषों को अपनी पूरी जिंदगी अपनी पत्नी को पैसे चुकाने और उनकी शर्तों को पूरा करने में बिता दी जाती है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि कुछ महिलाएं और उनके वकील इस कानूनी प्रावधान का दुरुपयोग करते हैं, और बिना किसी मजबूत कारण के पुरुषों से बड़े पैमाने पर पैसे ऐंठने की कोशिश करते हैं।
इसका उदाहरण हम निकिता सिंघानिया जैसे लोगों से देख सकते हैं, जिन्होंने इस कानून का फायदा उठाकर हर उस पुरुष की जिंदगी नर्क बना दी, जो सच्चाई के साथ जीने की कोशिश करता था। इस प्रकार के मामलों में, जहां कानूनी प्रक्रिया पूरी तरह से पुरुष के खिलाफ जाती है, वहाँ कई बार पुरुषों के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता। अतुल सुभाष जैसे दर्दनाक मामलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि समाज और कानून को इस दिशा में गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ कैंडल मार्च निकालने या #MenTooMovement ट्रेंड करने से समाज में बदलाव संभव है? जवाब है— नहीं। बदलाव तभी संभव है जब हम और हमारी सरकार मिलकर ठोस और प्रभावी कदम उठाएं। इसके लिए सबसे पहले तो जेंडर समान कानून (Gender Equal Law) बनाना बहुत जरूरी है, ताकि दोनों लिंगों को समान अधिकार मिले और किसी को भी कानून का दुरुपयोग करने का मौका न मिले। सरकार को इस दिशा में जल्द से जल्द काम करना चाहिए।
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण एक और कदम है— भारत में प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट (Prenuptial Agreement) को कानूनी रूप से वैध और मान्यता प्राप्त बनाना। अगर हम समाज में वास्तविक बदलाव चाहते हैं तो यह एक अहम कदम हो सकता है।
प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट: क्या है और क्यों यह भारत में जरूरी है?
कानूनी दृष्टिकोण से, यदि हम समानता की बात करें, तो एक कदम और आगे बढ़ने की आवश्यकता है—वह है प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट (Prenuptial Agreement) को वैध और कानूनी मान्यता देना। प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट, जिसे संक्षेप में “प्री-नप” कहा जाता है, एक समझौता है जिसे शादी से पहले दोनों पार्टनर्स एक-दूसरे के साथ मिलकर बनाते हैं। इसमें दोनों की संपत्ति, वित्तीय जिम्मेदारियां, और विवाह के दौरान होने वाली संभावित समस्याओं के हल के बारे में विस्तार से शर्तें निर्धारित की जाती हैं।
प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट का महत्व
आज के समय में, तलाक एक आम घटना बन चुकी है, और ऐसे में प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट दोनों पार्टनर्स को अपनी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक माध्यम देता है। इसमें ये भी तय किया जा सकता है कि अगर शादी खत्म होती है, तो संपत्ति और अन्य वित्तीय दायित्वों का वितरण किस प्रकार होगा। यह न केवल वित्तीय संपत्ति की रक्षा करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई भी पक्ष अव्यवस्थित रूप से नुकसान न उठाए।
कैसे काम करता है प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट?
- संपत्ति का वितरण: यह समझौता यह निर्धारित करता है कि शादी के दौरान दोनों के द्वारा अर्जित संपत्ति और व्यक्तिगत संपत्ति का क्या होगा यदि शादी टूटती है।
- ऋण का वितरण: अगर किसी एक पार्टनर पर शादी के दौरान कोई कर्ज है, तो उसे कैसे चुकाया जाएगा, इसका निर्धारण किया जा सकता है।
- अलिमनी और स्पाउसल सपोर्ट: समझौते में यह भी तय किया जा सकता है कि तलाक के बाद अलिमनी का भुगतान कैसे होगा।
प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट बनाने के लिए दोनों पक्षों को पारदर्शिता और ईमानदारी से काम करना होता है। यह एक कानूनी दस्तावेज है, और इसके निष्पक्ष होने के लिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई पक्ष दबाव में न हो।
पत्नी के झूठे मुकदमों से ऐसे बच सकते हैंपत्नी के झूठे मुकदमों से ऐसे बच सकते हैंभारत में विवाह से जुड़ी सैकड़ों जटिलताएं और कानूनी प्रक्रियाएं हैं, लेकिन इनकी वजह से पुरुषों को अधिकतर वित्तीय और मानसिक दबाव झेलना पड़ता है। अगर हम प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट को कानूनी रूप से मान्यता प्रदान करें, तो यह विवाह को एक संविदानिक समझौता बना सकता है, जहां दोनों पार्टनर्स अपनी व्यक्तिगत संपत्ति और जिम्मेदारियों को सुरक्षित रख सकते हैं।
यह कदम न केवल विवाह से जुड़े वित्तीय मुद्दों को हल करने में मदद करेगा, बल्कि यह दोनों पक्षों के लिए विवाह को एक अधिक पारदर्शी और सुरक्षित रिश्ता बनाएगा। इससे पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से अपने अधिकारों की रक्षा करने का मौका मिलेगा, और यह समाज में न्याय और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
अतुल सुभाष जैसे मामलों में जब हमें महसूस होता है कि पुरुषों को अधिक न्याय की आवश्यकता है, तो हमें यह भी समझना होगा कि प्री-नुप्शियल एग्रीमेंट जैसी व्यवस्थाएं उनके लिए एक सुरक्षा कवच साबित हो सकती हैं। समाज में बदलाव तभी संभव है जब हम इस तरह के कानूनी कदम उठाएं और समानता की दिशा में ठोस प्रयास करें।हमारी सरकार को इसे लेकर गंभीर कदम उठाने होंगे ताकि सभी नागरिकों को उनके अधिकारों और सुरक्षा का एहसास हो, चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं।
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