आज नवरात्रि का तीसरा दिन है, जब हम देवी चंद्रघंटा की पूजा करते हैं। इस दिन की विशेषता है देवी चंद्रघंटा का भव्य रूप, जो हमें संघर्षों का सामना करने की प्रेरणा देती हैं।
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप
चंद्रघंटा का नाम उनके मस्तक पर स्थित घंटे के आकार के अर्धचंद्र के कारण पड़ा। वे लाल-पीले वस्त्रों में सुसज्जित होती हैं और उनके पास विभिन्न अस्त्र-शस्त्र होते हैं। देवी चंद्रघंटा मणिपुर चक्र में निवास करती हैं, जो हमारी आंतरिक शक्ति का प्रतीक है।
पूजा और व्रत की विधि
पूजा के दौरान भक्तों को लाल, पीले या नारंगी कपड़े पहनने चाहिए। सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर में देवी की पूजा करें और व्रत का संकल्प लें। दिनभर उपवास रखें और देवी मंत्र का जप करें। शाम को पुनः पूजा करके व्रत खोलें।
देवी चंद्रघंटा की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह किया, तब एक असुर, तारकासुर, ने शिव परिवार पर हमला करने की योजना बनाई। पार्वती ने इस संकट से निपटने के लिए अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानकर लड़ाई का सामना किया। उन्होंने चंद्रमा की रोशनी में युद्ध करते हुए अपने साहस और बलिदान से असुरों को पराजित किया।
देवी चंद्रघंटा का संदेश
देवी चंद्रघंटा हमें यह सिखाती हैं कि हमें जीवन में आने वाली परेशानियों का सामना हमेशा साहस के साथ करना चाहिए। उनका घंटा न केवल युद्ध में शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह हमें भय से मुक्त करने की प्रेरणा भी देता है।
भक्ति का फल
जो भक्त चंद्रघंटा की आराधना करते हैं, वे साहस, शक्ति और संजीवनी की प्राप्ति करते हैं। देवी अपने भक्तों को सुरक्षा, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
इस नवरात्रि, देवी चंद्रघंटा के चरणों में नतमस्तक होकर, हम सभी जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहें। उनके आशीर्वाद से हम हर बाधा को पार कर सकते हैं।
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