क्या कभी घोड़ा पुस्तकालय भी हो सकता है! इस सवाल का जवाब है हां…!
घोड़ा पुस्तकालय या हॉर्स लाइब्रेरी एक अनूठी लाइब्रेरी है, जो केवल भारत में है। चल मेरे घोड़े टिक टिक…घोड़ा पेशौरी मेरा….जैसे गीत और बाल कहानियों में सफेद घोड़े पर आता राजकुमार …ये सब हम बचपन से सुनते आए हैं। घोड़े से हमे लगाव भी है। अमरनाथ, वैश्नोदेवी अदि धार्मिक जगह पर भी घोड़ों का विशेष महत्व है।
1943 से पहाड़ी दुर्गम इलाकों में पुस्तकों के प्रति प्रेम जगाने के लिए हॉर्स लाइब्रेरी शुरू की गई थी जो आज भी विश्व की मिसाल बनी हुई है। उत्तराखंड के नैनीताल जिले के पहाड़ी इलाकों में विश्व की एकमात्र घूमती फिरती घोड़ा लाइब्रेरी है। बच्चे मोबाइल से दूर रहे और उनमें पठन की प्रवृत्ति और शौक जगे ऐसी भावना के साथ इस मोबाइल घोड़ा पुस्तकालय की शुरुआत हुई है।
स्वयंसेवक घोड़े की पीठ पर पुस्तक के लाद कर दुर्गम ग्रामीण विस्तारों में जाते हैं और बच्चों को पढ़ने के लिए पुस्तके लाइब्रेरी की सिस्टम की तरह ही दी जाती है। जब यह घोड़ा लाइब्रेरी गांव में पहुंचती है बच्चे बेहद खुश हो जाते है। इस लाइब्रेरी में बहुत छोटी-छोटी किताबें होती हैं, जिसमें बाल कहानी, कार्टून, और बाल गीत आदि होते हैं। एक सप्ताह तक बच्चों को इसे पढ़ने के लिए दिया जाता है। एक सप्ताह बाद फिर से घोड़ा लाइब्रेरी उस गांव में जाती है, और पुस्तक वापस लेकर दूसरे पुस्तक देती है
इस घोड़ा लाइब्रेरी को बहुत ही अच्छा प्रतिसाद मिला है। ऐसी 30 लाइब्रेरी है, और करीब 1,00,000 लोगों तक यह पहुंचती है।यहां के पहाड़ी लोग इस मोबाइल पुस्तकालय के लिए अपने घोड़े भी देने को तैयार हैं। एक ऐसी घूमती फिरती लाइब्रेरी जो घोड़े पर सवार होकर निकलती है ,है ना पुस्तकों के प्रति प्रेम की नायाब मिसाल…!
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