2024 में लोकसभा चुनाव 19 अप्रैल से शुरू हो गए हैं जो 1 जून तक चलेंगी यानी सात चरणों में 543 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा जा रहा है। यानी ये चुनाव 46 दिनों तक चलने वाले है। ऐसे में सभी के मन में सवाल उठ रहे होंगे की पहली बार हमारे देश में लोकसभा चुनाव इतने ज्यादा दिनों तक चल रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। ये चुनावी शेड्यूल 1951-52 के बाद दूसरी सबसे लंबी इलेक्शन प्रक्रिया हैं। 1951-52 में हुए संसदीय चुनाव चार महीने से ज्यादा समय तक चली थी।
भारत को आजादी साल 1947 में मिली थी, लेकिन पहले आम चुनाव पांच साल बाद यानी 1952 में हुआ था। जिसपर पूरी दुनिया भर की नजरें टिकी थीं। सभी के मन में हजारों सवाल थे कि अभी-अभी तो देश आजाद हुआ है। इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में सफलतापूर्वक चुनाव कैसे कराए जाएंगे? लेकिन सभी आशंकाओं को झुठलाते हुए भारत ने न केवल चुनावों का सफल आयोजन किया, बल्कि ऐसे कई ऐतिहासिक कदम भी उठाए जिस पर निंव आज तक टिकी हुई है।
लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद मार्च 1950 में सुकुमार सेन को देश का पहला मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया। और उनके ही नेत्रित्व में दो साल बाद 1952 में एक साथ राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनाव करवाए गए।
उस दौरान भारत ने यूनिवर्सल अडल्ट फ्रैंचाइज यानी वयस्क मताधिकार के आधार पर आम चुनाव कराने का फैसला किया। यानी 21 साल और उससे अधिक उम्र वाले सभी नागरिकों को वोटिंग का अधिकार प्राप्त हुआ। वहीं उस दौरान ऐसे कई विकसित देश थे जहां महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं था, लेकिन भारत ने उस दौर में भी महिला हो या पुरुष सभी को ये अधिकार दिया।
सन् 1952 के चुनाव में यूं तो सभी पार्टियां जनसभाओं के जरिए और घर घर जाकर चुनाव प्रचार कर रही थी, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी एक अकेली ऐसी पार्टी थी, जिसको रेडियो पर प्रचार करने का मौका मिला था। वो भी आकाशवाणी पर ही नहीं , बल्कि रेडियो मास्को पर। यह रेडियो स्टेशन ताशकंद में अपने ट्रांसमीटर के जरिए कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव प्रचार करता था।
पहले चुनाव की प्रक्रिया कुल चार महीने चली थी। चुनाव का पहला वोट 25 अक्तूबर 1951 को हिमाचल प्रदेश में डाला गया था। फिर 1952 फरवरी के अंतिम सप्ताह में मतदान का काम पूरा हुआ। वोटिंग अनेक चरणों में आयोजित की गई। कुल मिलाकर करीब 4500 सीटों के लिए चुनाव हुआ था, जिसमें 499 सीटें लोकसभा की थी। आम चुनाव में करीब 17 करोड़ लोगों ने भाग लिया था, जिसमें 85 फीसदी लोग लिख पढ़ नहीं सकते थे।
अशिक्षित वर्ग को वोटिंग में दिक्कत न हो इसलिए मतपत्र में मतदाताओं के नाम के आगे चुनावी चिन्ह छापा गया था। दोबारा वोट डालने वालों को रोकने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसी स्याही का निर्माण किया जो मतदाता की उंगली पर हफ्तो भर रहे। पूरे देश में व्यापक अशिक्षा के बाद भी लगभग 45.7 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर मतदान किया था।
चुनाव में भाग लेने वाली मुख्य पार्टियों में कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ और कम्यूनिस्ट पार्टी शामिल थी। वहीं अगर कुल पार्टियों की बात करें तो चुनाव में हिस्सा लेने वाली 14 राष्ट्रीय पार्टियां थी और 40 क्षेत्रीय पार्टियां।
कांग्रेस की तरफ से प्रमुख प्रचारों में जवाहरलाल नेहरू थे और लाल बहादुर शास्त्री थे। एक अक्तूबर 1952 को नेहरू का पहला चुनाव प्रचार अभियान शुरू हुआ। नौ महीनों के अंदर नेहरू ने देश के कोने कोने में चुनाव प्रचार किया। वहीं सोशलिस्ट पार्टी के प्रमुख चेहरों में राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण का नाम शुमार था, जबकि जनसंघ का नेतृत्व श्यामा प्रसाद मुखर्जी कर रहे थे। अगर चुनावों के परिणाम की बात कर लें तो कांग्रेस को संसदीय चुनाव में कुल45 फीसदी मत मिले,लेकिन उसकी सीटों की संख्या 74 फीसदी थी। यानी कुल 364 सीटें पार्टी ने जीती थी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को कुल 16 सीटें मिली, जिसमें से आठ सीटें उसने मद्रास से जीती।
भारतीय जनसंघ ने 49 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें तीन सीटों पर उसे विजय मिली। पार्टी के अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी कोलकाता दक्षिण पूर्व से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे। किसान मजदूर प्रजा पार्टी ने 144 सीटों में चुनाव लड़ा, लेकिन उसके सिर्फ नौ उम्मीदवार ही लोकसभा में पहुंच सके। जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें सिर्फ 12 सीटों पर उन्हें जीत मिली।
देश के पहले ही आम चुनाव में कई दिग्गजों को हार का मुंह देखना पड़ा। जैसे कि देश के पहले कानून मंत्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और किसान मजदूर प्रजा पार्टी के कद्दावर नेता आचार्य कृपलानी। चुनाव के बाद जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनी और वह देश के पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बने।
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