यह घटना झारखंड के ग्रामीण इलाकों में बढ़ती प्रवासन की समस्या को उजागर करती है, जहां रोजगार की तलाश में पुरुष घर छोड़ने को मजबूर हैं, जिससे गांवों की सामाजिक संरचना प्रभावित हो रही है।
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक गांव में केवल एक ही पुरुष बचा था, और उसकी भी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। इस गांव के अधिकांश पुरुष मजदूरी के लिए केरल और तमिलनाडु चले जाते हैं, जिससे गांव में पुरुषों की उपस्थिति दुर्लभ हो गई है।
कालचिटी पंचायत के रामचंद्रपुर गांव में 40 वर्षीय जुंआ सबर नामक व्यक्ति का निधन हो गया। वह इस गांव के इकलौते पुरुष थे। गांव की महिलाओं ने ही उनके अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया। यह गांव काफी पिछड़ा हुआ है और यहां के लोग मजदूरी पर निर्भर हैं। गांव में सबर जाति के लोग रहते हैं, जिनकी संख्या लगातार घटती जा रही है। उनकी स्थिति बेहद दयनीय है और वे विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं।
गांव में रहते हैं केवल 28 परिवार
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रामचंद्रपुर गांव जंगलों के बीच बसा हुआ है। यहां सबर जाति के करीब 28 परिवार रहते हैं, जिनकी कुल जनसंख्या लगभग 80-85 के बीच है। गांव के लगभग 20 पुरुष रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों में रह रहे हैं। जुंआ सबर ही गांव में अकेले पुरुष थे। हाल ही में वे गंभीर रूप से बीमार हो गए थे, जिसके चलते उनका निधन हो गया। गांव में कोई पुरुष न होने के कारण, महिलाओं ने ही उनके अंतिम संस्कार की पूरी जिम्मेदारी निभाई। पहले महिलाओं ने मिलकर उनकी अर्थी तैयार की और फिर अंतिम यात्रा निकाली।
पत्नी भी अंतिम यात्रा में हुई शामिल
मृतक जुंआ सबर की दो शादियां हुई थीं। उनकी पहली पत्नी का पहले ही निधन हो चुका था। उनके बेटियों ने पिता की अर्थी को कंधा दिया और अन्य महिलाओं की सहायता से खुद कब्र खोदकर उन्हें दफनाया। जुंआ सबर का 17 वर्षीय बेटा तमिलनाडु में मजदूरी करता है, जबकि उनका 10 वर्षीय बेटा अपने रिश्तेदारों के यहां गया हुआ था।
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