बिहार के कई जिलों में बाढ़ ने तबाही मचा दी है, जहां 2 लाख से ज्यादा फसलें जलमग्न हो चुकी हैं। किसानों को इस आपदा से भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, जिसका वास्तविक आकलन पानी उतरने के बाद ही किया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया और आपदा प्रबंधन के दिशा-निर्देश जारी किए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आपदा पीड़ितों के लिए सरकारी खजाने का पहला अधिकार है। राज्य में राहत और बचाव कार्यों में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। इसी बीच, केंद्र सरकार ने बिहार के लिए 655 करोड़ रुपए की आपदा राहत राशि भी जारी की है, जबकि केंद्रीय टीमों को नुकसान का आकलन करने के लिए भेजा गया है।
हालांकि, विपक्षी दलों का आरोप है कि राहत कार्यों में देरी हो रही है। पूर्वी चंपारण से लेकर पटना तक, आधा बिहार बाढ़ के पानी में डूब चुका है। करीब 16 लाख लोग इस आपदा से प्रभावित हुए हैं, और कई जिलों में बाढ़ की स्थिति 1968 की भीषण तबाही की याद दिला रही है।
कोसी और गंडक नदियों के जलस्तर में रिकॉर्ड वृद्धि के साथ, बिहार में बाढ़ की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। नेपाल से छोड़े गए जल की मात्रा ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। राज्य में जल संसाधन विभाग के कई इंजीनियर राहत कार्यों में जुटे हैं, लेकिन जब 16 जिलों के 55 प्रखंड बाढ़ की चपेट में हों, तो वास्तविक राहत कितनी प्रभावी हो रही है, यह सवाल उठता है।
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी इस स्थिति को ‘भयावह’ करार दिया है और प्रधानमंत्री से मुलाकात की योजना बनाई है। वहीं, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने नेपाल से लगते क्षेत्रों में बाढ़ रोकने के लिए अतिरिक्त बैराज के निर्माण की मांग की है।
यह स्थिति चिंताजनक है कि हर साल बिहार की एक करोड़ 70 लाख एकड़ जमीन बाढ़ के पानी में डूब जाती है। फिर भी, सरकारों ने बाढ़ से निपटने के ठोस उपाय क्यों नहीं किए? क्या यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा है या फिर हमारी प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा?
राज्य सांसद मीसा भारती ने स्थिति संभालने में देरी का आरोप लगाया है, और यह स्पष्ट है कि प्रभावित लोगों की संख्या 11.84 लाख तक पहुंच गई है। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें राहत कार्यों में लगी हुई हैं, और कई राहत शिविर भी स्थापित किए गए हैं।
इस संकट के बीच, बिहार वासियों की साहस की आवश्यकता है। प्रशासन को भी चाहिए कि वह इस आपदा को गंभीरता से लेकर भविष्य के लिए ठोस कदम उठाए। यह समय है न केवल राहत देने का, बल्कि उन उपायों को सोचने का जो इस तरह की आपदाओं से बचाने में सहायक हों।
इस संकट के समय, हमारी एकजुटता और सामूहिक प्रयास ही हमें इस भयंकर बाढ़ से उबार सकते हैं।
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