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history of Ratlami Sev

200 साल पहले मुगल काल से शुरू हुई रतलामी सेव की दास्तान, जानें इसका ऐतिहासिक सफर

History of Ratlami Sev: आपने नाश्ते में नमकीन का स्वाद जरूर चखा होगा, लेकिन जब बात नमकीन की हो और रतलामी सेव का ज़िक्र न हो, तो कुछ अधूरा-सा लगता है। रतलामी सेव, जो अपने मसालेदार स्वाद के लिए दुनियाभर में मशहूर है, उसे 2014-15 में जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) भी प्राप्त हुआ। पर क्या आप इसके इतिहास के बारे में जानते हैं? आइए, ‘इतिहास के पन्नों से’ के इस लेख में जानते हैं रतलामी सेव की रोचक कहानी।

रतलामी सेव का नाम मध्य प्रदेश के रतलाम शहर से लिया गया है, जहां से इसकी शुरुआत हुई। इसकी कहानी 200 साल पुरानी है, जब 19वीं सदी में मुगल शाही परिवार मालवा क्षेत्र की यात्रा पर आया। यात्रा के दौरान मुगलों ने रतलाम में कुछ समय बिताया। मुगल परिवार सेवइयां खाने के शौकीन थे, लेकिन रतलाम में सेवइयां बनाने के लिए गेहूं उपलब्ध नहीं था।

उस समय रतलाम में गेहूं को अमीरों का अनाज माना जाता था और वहां के लोग ज्यादातर चने, बाजरा और जौ जैसे अनाज से बने रोटियां खाते थे। मुगल परिवार की इच्छा को देखते हुए, स्थानीय भील समुदाय को चने के आटे से सेवइयां बनाने का सुझाव दिया गया। इस प्रयोग से रतलामी सेव की पहली किस्म तैयार हुई, जिसे “भिलड़ी सेव” कहा गया।

भिलड़ी सेव में धीरे-धीरे मसालों का प्रयोग शुरू हुआ। लोंग, हींग, काली मिर्च जैसे मसालों ने इसे एक नया और अनूठा स्वाद दिया। स्थानीय लोगों ने इस सेव को व्यावसायिक रूप से बनाना शुरू कर दिया।

रतलाम के साखलेचा परिवार को रतलामी सेव के पहले व्यावसायिक निर्माताओं में गिना जाता है। 1900 के दशक की शुरुआत में, शांतिलाल साखलेचा और उनके पिता केसरमल साखलेचा ने पहली बार रतलामी सेव की दुकान खोली। धीरे-धीरे इस व्यवसाय में और भी लोग जुड़े, और रतलामी सेव की लोकप्रियता बढ़ती गई।

200 सालों से अधिक पुरानी इस सेव ने आज कई स्वादों में अपनी जगह बना ली है। पारंपरिक मसालेदार सेव के अलावा अब यह लौंग, हींग, लहसुन, काली मिर्च, पालक, टमाटर, फूदीना, पाइनएप्पल, पोहा, मैगी, और यहां तक कि चॉकलेट फ्लेवर में भी उपलब्ध है।

रतलामी सेव न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि यह रतलाम की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा भी बन चुकी है। यह सेव न केवल भारतीयों के दिलों में एक खास जगह रखती है, बल्कि विदेशों में भी लोग इसे बेहद पसंद करते हैं।

तो, अगली बार जब आप नमकीन का आनंद लें, तो रतलामी सेव की इस ऐतिहासिक और अनूठी कहानी को याद जरूर करें।