गुजरात के वडोदरा में होली की रात एक ऐसा कांड हुआ, जिसने सिर्फ शहर ही नहीं, पूरे देश को हिला दिया। एक लॉ स्टूडेंट की रफ्तार, नशा और लापरवाही ने एक महिला की जान ले ली, और अब मामला अदालत के दरवाजे पर है – जहां पुलिस ने आरोपी की ‘कुंडली’ खोल कर रख दी है।
जमानत की कोशिशें और पुलिस का सख्त विरोध
एमएस यूनिवर्सिटी, वडोदरा के चौथे वर्ष के लॉ स्टूडेंट रक्षित चौरसिया की जमानत की अर्जी को लेकर वडोदरा पुलिस ने कोर्ट में जमकर विरोध किया। पुलिस की दलील थी – “यह सिर्फ एक सड़क दुर्घटना नहीं, बल्कि जानबूझकर की गई गैरजिम्मेदाराना हरकत है, जिसमें नशे का कॉकटेल, तेज़ रफ्तार और कानून की धज्जियां उड़ाना शामिल है।”
वॉक्सवैगन वर्टस बनी मौत की सवारी
हादसे की रात रक्षित चौरसिया 140 किमी/घंटा की रफ्तार से अपनी वॉक्सवैगन वर्टस कार दौड़ा रहा था – बिलकुल वंदे भारत की स्पीड से भी तेज़। उसकी कार ने तीन वाहनों को हिट किया और इस खतरनाक रेसिंग स्टंट में एक महिला की दर्दनाक मौत हो गई।
ड्रग्स का डोज़: THC और कोडीन की पुष्टि
एफएसएल रिपोर्ट ने पुलिस की बात को और मजबूती दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षित चौरसिया के शरीर में टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (THC) और कोडीन की मौजूदगी पाई गई। यानी, गांजा और अन्य साइकोट्रोपिक ड्रग्स के नशे में धुत होकर वह सड़क को रेस ट्रैक समझ बैठा।
CCTV ने खोले राज़: ‘ऊं नम: शिवाय’, ‘निकिता’ और ‘अनदर राउंड’ की चीखें
हादसे के बाद रक्षित की हरकतें और भी चौंकाने वाली थीं। CCTV फुटेज में वह नशे में बड़बड़ाते हुए ‘ऊं नम: शिवाय’, ‘निकिता’ और ‘अनदर राउंड’ चिल्लाता देखा गया। यह न सिर्फ नशे की हालत दिखाता है बल्कि मानसिक स्थिति पर भी सवाल उठाता है।
सह आरोपी और नशे का अड्डा
इस केस में दो और नाम सामने आए – प्रांशु चौहान (कार का मालिक) और सुरेश भरवाड़। दोनों पर भी NDPS एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ है। तीनों ने साथ में गांजा पिया था, और प्रांशु ने जानते हुए भी कार चौरसिया को सौंप दी, जो खुद नशे में था।
पुलिस की कोर्ट में पेश 9 मजबूत दलीलें
पुलिस का कहना है कि:
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आरोपी कानून जानता है और जांच को प्रभावित कर सकता है।
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गवाहों को डराने या सबूत मिटाने की कोशिश कर सकता है।
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NDPS केस में जमानत से गलत संदेश जाएगा।
जब कानून का छात्र कानून तोड़े…
ये केस केवल कानून का उल्लंघन नहीं है, यह एक सोच पर सवाल है। जब एक लॉ का छात्र, जिसे कानून का रक्षक बनना चाहिए, खुद कानून का हत्यारा बन जाए – तब समाज को यह देखना चाहिए कि कानूनी शिक्षा में नैतिकता की कितनी जगह बची है?
इस हादसे ने साफ कर दिया है कि नशा, रफ्तार और लापरवाही का कॉम्बो कितना जानलेवा हो सकता है। और ऐसे मामलों में केवल कड़ी सजा ही नहीं, सामाजिक संदेश भी ज़रूरी है।
मंगलवार, 22 अप्रैल को सेशन कोर्ट में जमानत अर्जी पर सुनवाई होगी। देखना होगा कि न्यायालय इस ‘स्पीड, ड्रग्स और डेथ’ ट्रायंगल को किस तरह देखता है।

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