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जगन्नाथ मंदिर के ‘रत्न भंडार’ का राज, जानें 46 साल पहले क्या हुआ था

46 साल के बार आखिर ओडिशा के पुरी के विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडा में रखे गए बहुमूल्य रत्न अलंकारों की गिनती शुरू हो चुकी है। शुभ मुहूर्त के मुताबिक आज दोपहर ठीक एक बजकर 28 मिनिट पर 11 सदस्यों की एक टीम रत्न भंडार के अंदर पहुची।

चार धामों में से एक जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर में एक रत्न भंडार है। इसी रत्न भंडार में जगन्नाथ मंदिर के तीनों देवताओं जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा के गहने रखे गए हैं। 46 साल पहले यह कार्यप्रणाली  13 मई, 1978 से शुरू होकर 23 जुलाई, 1978 यानी पूरे 70 दिन चली थी।

लगभग ढाई महीने बाद भी पूरी तरह संपन्न नहीं हो पाई थी। इसके लिए तिरुपति मंदिर सहित बाहर से बुलाए गए अलंकार विशेषज्ञ भी रत्न भंडार में रखे गए कई आभूषणों का सही आकलन नहीं कर पाए थे। लेकिन, जिन आभूषणों की शिनाख्त और गिनती हो पाई थी, वह भी कुछ कम चौंकाने वाले नहीं थे।

रत्न भंडार में कुल 747 प्रकार के आभूषण मिले थे जिनमें 12,838 तोला सोने के गहने और 22,153 तोला चांदी के अलंकारों के अलावा कई हीरे, जवाहरात के कई बहुमूल्य आभूषण थे।

ये आभूषण बीती कई सदियों में या तो प्रभु जगन्नाथ के भक्त राजा-महाराजाओं ने दान में दिए गए थे या फिर ओडिशा के राज-घरानों की तरफ़ से अन्य राज्यों के साथ युद्ध में विजय के बाद मिले थे।

जगन्नाथ मंदिर में आभूषणओं को लुटने के लिए कई हमले

इन बहुमूल्य आभूषणों को लूटने के लिए 15वीं से लेकर 18वीं सदी के बीच मंदिर पर कम से कम 15 बाहरी आक्रमण हुए, जिनमें से आखिरी आक्रमण बंगाल के एक तत्कालीन सेनापति मोहम्मद तकी ख़ान ने वर्ष 1731 में किया था।

इन आक्रमणों में कई बहुमूल्य अलंकार लूट लिए गए। लेकिन, इसके बावजूद रत्न भंडार की पुख्ता और जटिल सुरक्षा व्यवस्था के कारण ज्यादातर हीरे जवाहरात सुरक्षित बच गए।

माना जाता है कि रत्न भंडार में हीरे, मोती, स्वर्ण और अन्य कई बहुमूल्य रत्न से बने बेशुमार आभूषण हैं जिनके मूल्य सैकड़ों करोड़ रुपयों में है।

खबरों के मुताबिक, डिजिटल टेक्नोलॉजी में हुई प्रगति के कारण इस बार गिनती में शायद इतना समय न लगे। लेकिन, इस प्रक्रिया को संपन्न करने में कितना समय लगेगा, यह बताना फिलहाल नामुनकिन है।

रत्न भंडार के लिए बनाई गई कमिटी के अध्यक्ष जस्टिस विश्वनाथ रथ ने कहा है कि सारे आभूषणों की गिनती के साथ साथ उनके मानक तय किए जाएंगे और फिर उनका एक डिजिटल कैटलॉग बनाया जाएगा और साल 1978 में रिकार्ड किए गए आभूषणों की सूची से उसकी तुलना करके यह देखा जाएगा कि सभी आभूषण मौजूद हैं या नहीं।