History of Indian Horror Films: भारतीय सिनेमा की हॉरर फिल्मों का सफर एक दिलचस्प और थ्रिलिंग इतिहास से भरा है। अगर आप 70 और 80 के दशक की फिल्मों पर नज़र डालें तो उस समय का हॉरर फिल्मों का पर्याय बन चुके रामसे ब्रदर्स को याद करना अनिवार्य है। उन्होंने ‘वीराना’, ‘तहख़ाना’, ‘पुराना मंदिर’ जैसी लगभग 45 फ़िल्में बनाई थीं, जो भारतीय दर्शकों के लिए एक अद्भुत हॉरर अनुभव लेकर आईं। उनका फार्मूला भूतिया हवेलियों, डरावने कैरेक्टर्स, और असाधारण घटनाओं के आसपास घूमता था, जिसने कई दर्शकों को डर से कांपने पर मजबूर किया। उस समय की इन फ़िल्मों का बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाना भी यह साबित करता था कि डर और रहस्य में भारतीय दर्शकों की गहरी रुचि रही है।
हॉरर फिल्मों का ठहराव और राम गोपाल वर्मा का दौर
रामसे ब्रदर्स के बाद हॉरर फिल्मों का दौर कुछ ठहर सा गया था। बड़े पर्दे पर हॉरर की मौजूदगी धीरे-धीरे कम होने लगी, और लगभग ऐसा लगने लगा कि हॉरर शैली का क्रेज समाप्त हो रहा है। इसी बीच, 90 के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में, फिल्म निर्माता राम गोपाल वर्मा ने भारतीय हॉरर सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने ‘कौन’, ‘रात’, ‘भूत’ जैसी फिल्मों से दर्शकों के दिलों में डर का माहौल फिर से कायम किया। हालांकि, उनके द्वारा बनाई गई अन्य फिल्में जैसे ‘फूंक’ और ‘डरना मना है’ इतनी सफल नहीं हो सकीं, लेकिन ‘भूत’ ने उस समय के हॉरर के सूखे को समाप्त कर दिया।
‘भूत’ एक मॉडर्न हॉरर फिल्म थी जिसने सस्पेंस और सजीव अनुभव के साथ दर्शकों को रोमांचित कर दिया। राम गोपाल वर्मा ने हॉरर को एक नया रूप देने की कोशिश की और दर्शकों के बीच इसे स्वीकार्यता भी मिली, लेकिन फिर भी पुराने जमाने का हॉरर जो रामसे ब्रदर्स के समय था, उस स्तर तक नहीं पहुंच सका।
नए ज़माने की हॉरर: ‘स्त्री’ और ‘तुम्बाड’ का जादू
इसके बाद, 2010 के बाद, भारतीय सिनेमा में हॉरर फिल्मों का एक नया दौर शुरू हुआ। खासकर 2018 में ‘स्त्री’ और ‘तुम्बाड’ जैसी फिल्मों ने इस शैली में एक नई जान डाल दी। इन फिल्मों ने हॉरर को आधुनिक सामाजिक संदर्भों और मौलिक कहानियों के साथ पेश किया, जिससे दर्शक नए तरीके से डर महसूस करने लगे।
‘स्त्री’ ने हॉरर और कॉमेडी का एक अनूठा मिश्रण पेश किया, जो दर्शकों को भय और हंसी का नया अनुभव दे गया। यह फिल्म एक छोटे से गांव की कहानी है जहां लोग रात में बाहर निकलने से डरते हैं क्योंकि एक महिला भूत (स्त्री) पुरुषों को उठा ले जाती है। इस फिल्म ने भारतीय समाज के कई अंधविश्वासों और परंपराओं को ध्यान में रखते हुए एक दिलचस्प हॉरर कहानी प्रस्तुत की।
फिल्म ‘तुम्बाड’ को भी विशेष रूप से सराहा गया। इसकी कहानी पौराणिक कथाओं और मानवीय लालच पर आधारित थी, जिसने दर्शकों के मनोवैज्ञानिक डर को गहराई से छुआ। तुम्बाड का भूतिया माहौल और इसकी सिनेमैटोग्राफी ने इसे एक अलग पहचान दिलाई। जब यह फिल्म 2018 में रिलीज़ हुई थी, तब इसे पहले हफ्ते में 5.85 करोड़ और दूसरे हफ्ते में 3.14 करोड़ रुपये की कमाई की थी। ये आंकड़े छोटे लग सकते हैं, लेकिन इसके विषय की गहराई और नयेपन के कारण यह फिल्म एक क्लासिक मानी गई।
‘स्त्री-2’ और बॉक्स ऑफिस पर धमाल
हाल ही में रिलीज़ हुई ‘स्त्री-2’ ने एक बार फिर साबित किया कि हॉरर फिल्में अब भारतीय सिनेमा में मुख्यधारा का हिस्सा बन गई हैं। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाते हुए अब तक करीब 583 करोड़ रुपये की कमाई कर ली है और 600 करोड़ रुपये की ओर बढ़ रही है। इसका यह प्रदर्शन बताता है कि दर्शकों की हॉरर फिल्मों में दिलचस्पी बढ़ी है और वे इस शैली को खूब पसंद कर रहे हैं।
ओटीटी प्लेटफार्म्स का योगदान
हॉरर फिल्मों की वापसी में ओटीटी प्लेटफार्म्स की भी अहम भूमिका रही है। ओटीटी ने फिल्म निर्माताओं को नए तरह की कहानियों को आज़माने का मौका दिया है। ‘मुंज्या’, ‘भेड़िया’, और कई अन्य हॉरर फिल्में और वेब सीरीज ने लोगों को घर बैठे डर का अनुभव करवाया। यह कहना गलत नहीं होगा कि ओटीटी ने हॉरर की जड़ों को और मजबूत किया है और इस शैली को व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंचाया है।
क्या हॉरर का दौर वापस आ गया है?
‘स्त्री’, ‘तुम्बाड’, और ‘भूत’ जैसी फिल्मों की सफलताओं को देखते हुए, यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय सिनेमा में हॉरर फिल्मों का दौर एक बार फिर लौट आया है। परंतु, अब यह दौर पहले की तरह केवल भूत-प्रेत और भूतिया हवेलियों तक सीमित नहीं है। अब हॉरर फिल्मों में सामाजिक मुद्दों, मनोवैज्ञानिक डर, और मौलिक कहानियों को भी ध्यान में रखा जा रहा है।
आज भारतीय दर्शक नई तरह की हॉरर फिल्मों का आनंद ले रहे हैं जो उन्हें सिर्फ डराती नहीं, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करती हैं। रामसे ब्रदर्स से लेकर आज तक, भारतीय हॉरर फिल्मों का सफर कई बदलावों और प्रयोगों से भरा रहा है, और ऐसा लगता है कि यह सफर अभी लंबा चलने वाला है।
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