साल 1947 से 1950 के बीच कई राजाओं और नवाबों की रियासतों को मिलाकर विशाल भारत देश का गठन हुआ, लेकिन महात्मा गांधी और सरदार पटेल की कर्मभूमि गुजरात आज़ादी के वक्त इस नाम से नहीं जाना जाता था।
आज़ादी से पहले यह अंग्रेज़ों की हुकूमत वाले बंबई प्रेसीडेंसी का हिस्सा था, 1947 के बाद इसे बंबई राज्य में शामिल किया गया। 1953 में पहला राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. इसके आधार पर 14 राज्य तथा नौ केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए.तब गुजरात बंबई राज्य में शामिल था,लेकिन उसके बाद आज के गुजरात क्षेत्र में महागुजरात आंदोलन उठ खड़ा हुआ। जिसके बाद 1960 में बंबई राज्य को दो हिस्सो में बांट दिया गया और इस तरह हुआ गुजरात का जन्म।गुजरात में पहली बार 1960 में विधानसभा चुनाव कराए गए,132 सीटों के लिए हुए चुनाव में 112 सीटों पर कांग्रेस जीती।
एक मई 1960 से 18 सितंबर 1963 तक राज्य के पहले मुख्यमंत्री कुछ समय के लिए महात्मा गांधी के डॉक्टर रह चुके जीवराज नारायण मेहता रहे।इसके बाद पंचायती राज के वास्तुकार माने जाने वाले बलवंतराय मेहता दूसरे मुख्यमंत्री बने।स्वतंत्रता सेनानी रह चुके बलवंत राय मेहता 19 सितम्बर 1965 को अपने निधन तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे।भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तानी विमान ने कच्छ जा रहे मेहता के विमान पर हमला कर दिया था, जिसमें उनकी मौत हो गई। इसके बाद हितेंद्र देसाई मुख्यमंत्री बने. इनके कार्यकाल में गुजरात में पहली बार सांप्रदायिक दंगा भड़का था।इसके बाद घनश्याम ओझा मुख्यमंत्री बने जिन्हें हटाकर कांग्रेस ने चिमनभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया।चिमनभाई पटेल वो ही नेता थे जिन्होंने कभी इंदिरा गांधी के सामने गुस्से में कहा था कि वहां का मुख्यमंत्री कौन बनेगा यह गुजरात के विधायक तय करेंगे।लगभग 200 दिनों तक वो मुख्यमंत्री रहे लेकिन फिर उन्हें नव निर्माण आंदोलन के दबाव में इस्तीफ़ा देना पड़ा।
विधानसभा भंग की गई और जब दोबारा चुनाव हुए तो कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा, और बाबूभाई पटेल के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ, भारतीय लोकदल, समता पार्टी और कांग्रेस से अलग हुई पार्टी कांग्रेस (ओ) की 211 दिनों की सरकार बनी।बाबूभाई पटेल गुजरात के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे.लेकिन आपातकाल के बाद यहां की राजनीति में माधव सिंह सोलंकी जैसे धुरंधर राजनेता की एंट्री होती है और गुजरात की राजनीति एक नई करवट लेती है।साल 1980 में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद माधवसिंह सोलंकी एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. उन्होंने आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया।राज्य में इसका पुरजोर विरोध हुआ. फिर दंगे भड़के. 1985 में उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा।ये माधव सिंह सोलंकी ही थे जिन्होंने क्षत्रियों, हरिजनों, आदिवासी और मुसलमानों को एक साथ लाने की ‘खाम थ्योरी’ बनाई थी और कांग्रेस को 1985 में अभूतपूर्व 149 सीटें दिलाई. जो आज भी किसी एक पार्टी को गुजरात में मिली सबसे अधिक सीटों की संख्या है.इसके बाद 1990 का चुनाव गुजरात जनता दल और भाजपा मिलकर लड़े. जनता दल के नेता चिमनभाई पटेल थे और भाजपा ने केशुभाई पटेल को अपना नेता घोषित किया था।भाजपा समझ चुकी थी कि दलित-मुस्लिम और क्षत्रिय मतदाता अगर कांग्रेस के साथ हैं तो वो पटेलों को अपने साथ कर चुनाव जीत सकती है।
केशुभाई पटेल को नेतृत्व दिया गया,भाजपा का यह प्रयोग सफल हुआ और 1990 में कांग्रेस की हार हुई और जनता दल और भाजपा की मिली-जुली सरकार बनी।हालांकि राम मंदिर के मुद्दे पर भाजपा और जनता दल का साथ टूट गया, लेकिन इस दौरान भाजपा ने पटेल समुदाय पर अपना वर्चस्व हासिल कर लिया था. इसका फ़ायदा भाजपा को 1995 में मिलना शुरू हुआ।1995 में 182 सीटों में से 121 सीटें भाजपा के पक्ष में गईं. भाजपा की जीत के बाद केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने, लेकिन वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.2001 में आए भूकंप के बाद उनकी निष्क्रियता और लगातार कई उपचुनावों में हार के बाद उन्हें हटाकर गुजरात राज्य की राजनीति में नरेंद्र मोदी की एंट्री हुई।लगातार तीन कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री रहने के बाद नरेंद्र मोदी 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने और फिर गुजरात में आनंदीबेन पटेल पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।दो साल तक पद पर बने रहने के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दिया और विजय रूपाणी मुख्यमंत्री बनाए गए।1995 में भाजपा ने आर्थिक रूप से पिछड़ों और पटेल समुदाय को साथ लेकर सत्ता हासिल की।तब से लेकर आज तक पिछले 22 सालों से गुजरात में भाजपा की ही सरकार बनती आ रही है।
फिलहाल भूपेंद्र पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री है। 2012 के चुनाव में भाजपा ने राज्य की 182 में से 115 सीटें जीतीं. कांग्रेस को एक तिहाई 61 सीटें मिली थीं।इसके दो साल बाद 2014 में लोकसभा चुनाव में भी भाजपा का बोलबाला रहा और उसने रिकॉर्ड सभी 26 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की, कुल मिलाकर देखा जाये तो 1975 और 1990 केवल दो मौकों को छोड़ कर गुजरात की जनता लगभग हमेशा किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत देती रही है। 1990 से 2024 तक भारतीय जनता पार्टी सत्ता में रही और 2024 में भी गुजरात में उनकी सत्ता पर कोई आंच नहीं दिख रही है।
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