लाल चंदन (Red Sandalwood) जिसे भारतीय संस्कृति में ‘रक्त चंदन’ के नाम से भी जाना जाता है, न केवल अपनी दुर्लभता और औषधीय गुणों के लिए मशहूर है, बल्कि यह भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में लकड़ी के सबसे महंगे प्रकारों में से एक है। फिल्म पुष्पा: द राइज ने लाल चंदन की अवैध तस्करी और इसके महत्व को लोकप्रिय बना दिया। लेकिन इसके पीछे की वास्तविकता कहीं ज्यादा दिलचस्प और जटिल है।
क्या है लाल चंदन?
लाल चंदन एक दुर्लभ लकड़ी है, जिसका वैज्ञानिक नाम Pterocarpus santalinus है। यह मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी हिस्सों, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश के जंगलों में पाया जाता है। इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं, पारंपरिक पूजा सामग्री, फर्नीचर, और सजावटी सामान बनाने में किया जाता है। इसके अलावा, लाल चंदन की लकड़ी को चीन और जापान जैसे देशों में लक्जरी सामान और धार्मिक मूर्तियां बनाने के लिए अत्यधिक पसंद किया जाता है।
दुर्लभता और खेती की भौगोलिक सीमा
लाल चंदन की खेती मुख्य रूप से भारत के आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, और कर्नाटक के जंगलों में ही होती है। इसकी खेती के लिए विशिष्ट जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह एक धीमी गति से बढ़ने वाला वृक्ष है, जिसे परिपक्व होने में 25-40 साल लगते हैं।
भारत में इसकी कटाई और व्यापार पर सख्त सरकारी नियंत्रण है। वन अधिनियमों के तहत, लाल चंदन की कटाई के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है, क्योंकि यह संरक्षित प्रजातियों में से एक है।
2 लाख रुपए प्रति किलो की कीमत का कारण
- दुर्लभता: लाल चंदन केवल भारत में ही उगता है। इसकी सीमित उपलब्धता और बढ़ती मांग इसकी कीमत को आसमान तक पहुंचा देती है।
- औषधीय और सांस्कृतिक महत्व: इसका उपयोग पारंपरिक औषधियों, त्वचा की देखभाल, और आध्यात्मिक क्रियाओं में होता है। इसके अलावा, लाल चंदन पाउडर का उपयोग सुगंधित उत्पादों और प्राकृतिक रंग बनाने में किया जाता है।
- अंतरराष्ट्रीय मांग: चीन, जापान, और सिंगापुर जैसे देशों में इसकी लकड़ी का इस्तेमाल बेशकीमती फर्नीचर और सजावटी वस्तुएं बनाने में होता है।
- सख्त सरकारी नियंत्रण: इसकी खेती और व्यापार पर कड़े नियम हैं, जिससे लाल चंदन की अवैध तस्करी बढ़ी है।
लाल चंदन की तस्करी: एक बड़ा खतरा
लाल चंदन के पेड़ की सीमित उपलब्धता और उच्च कीमतों के कारण यह तस्करों के लिए एक बड़ा आकर्षण है। भारत से लाल चंदन की अवैध तस्करी मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में होती है। तस्करी के बड़े गिरोह इसकी लकड़ी को जंगलों से चोरी-छिपे काटकर करोड़ों रुपए में बेचते हैं। कई बार इसके लिए वनों की बड़े पैमाने पर कटाई की जाती है, जो पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाती है। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले और अन्य जंगल तस्करी के मुख्य केंद्र हैं।
फिल्म ‘पुष्पा’ और लाल चंदन का कनेक्शन
फिल्म पुष्पा: द राइज ने लाल चंदन की अवैध तस्करी की कहानी को केंद्र में रखकर इसे ग्लोबल चर्चा का विषय बना दिया। फिल्म में दिखाया गया कि कैसे लाल चंदन की तस्करी के लिए गिरोह जंगलों और पुलिस से छिपकर इसे इकट्ठा करते हैं। हालांकि, वास्तविकता में तस्करी और इसके परिणाम फिल्म से कहीं ज्यादा गंभीर हैं।
लाल चंदन के संरक्षण के प्रयास
भारतीय सरकार और विभिन्न संस्थाएं इस दुर्लभ प्रजाति को बचाने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं।
- कानूनी प्रावधान: भारतीय वन अधिनियम के तहत लाल चंदन की कटाई पर कड़ा प्रतिबंध है। निर्यात के लिए विशेष लाइसेंस की आवश्यकता होती है।
- सतत खेती: कुछ क्षेत्रों में लाल चंदन की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- पुनर्वनीकरण: सरकारी योजनाओं के तहत जंगलों में लाल चंदन के नए पौधे लगाए जा रहे हैं।
- जागरूकता कार्यक्रम: स्थानीय समुदायों और किसानों को इसके महत्व और संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूक किया जा रहा है।
लाल चंदन भारत की वन संपदा का एक अनमोल हिस्सा है। इसकी उच्च कीमत और अंतरराष्ट्रीय मांग इसे खास बनाती है, लेकिन अवैध तस्करी और घटती उपलब्धता इसके अस्तित्व के लिए खतरा हैं।
फिल्म पुष्पा ने इस विषय को लोकप्रिय बनाया है, लेकिन यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि इसे बचाने के लिए प्रयास करें। सरकारी नीतियों और स्थानीय सहयोग से हम इस बेशकीमती लकड़ी को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रख सकते हैं।
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