पटना। हिंदी साहित्य और लोकसंस्कृति के प्रख्यात विद्वान डॉ. ओमप्रकाश केसरी ‘पवननंदन’ का 74 वर्ष की आयु में शनिवार देर रात निधन हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे और पटना के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
डॉ. पवननंदन ने हिंदी कविता, निबंध, और लोककथा साहित्य में अमूल्य योगदान दिया। उनकी लेखनी में सामाजिक सरोकारों की गहरी समझ थी, और उनकी कविताएँ जनमानस को झकझोरने का सामर्थ्य रखती थीं। उनकी प्रमुख कृतियों में “धूप के साए”, “संध्या के गीत”, और “लोकसंस्कृति के रंग” शामिल हैं, जो न केवल पाठकों को विचारशील बनाती हैं बल्कि समाज को भी दिशा देने का कार्य करती हैं।
उनके शिष्य और साहित्यकार डॉ. विनय मिश्र ने कहा, “डॉ. पवननंदन जी का निधन साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी रचनाएँ सदैव प्रेरणा देती रहेंगी।”
डॉ. पवननंदन ने अपने जीवनकाल में कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त किए थे। वे पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रोफेसर रह चुके थे और उन्होंने अनेक छात्रों को साहित्य साधना की प्रेरणा दी थी।
उनके अंतिम दर्शन के लिए पटना के साहित्य प्रेमी, लेखक, और प्रशंसक उमड़ पड़े। उनकी अंतिम यात्रा रविवार को उनके पैतृक गांव नालंदा में संपन्न होगी, जहां उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी।
साहित्य प्रेमियों के लिए यह एक गहरी क्षति है, लेकिन उनकी लेखनी और विचार हमेशा अमर रहेंगे।

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