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Monday, April 7   6:33:48

हीरा बेन की उड़ान: समाज की बेड़ियों से निकलकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ती एक जुझारू महिला की कहानी

हीरा बेन वडोदरा के एक छोटे से गाँव में पली-बढ़ी थी,जहाँ
लड़कियों की पढ़ाई को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। लेकिन हीरा बेन के सपने ऊँचे थे। वह बचपन से ही आत्मनिर्भर बनना चाहती थी, और आगे पढ़ना चाहती थी ताकि अपने और अपने जैसे अनेकों महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सके

हालांकि उनके पिता हमेशा उनकी पढ़ाई और एक नए बदलाव के खिलाफ थे साथ ही सामाजिक ताने बाने को बहुत ज्यादा महत्व देने वाले व्यक्ति थे , उनकी इसी विचार धारा के कारण की “समाज में चार लोग क्या कहेंगे” हीरा बेन की शादी 14 वर्ष की छोटी आयु में करा दी गई जिसके पश्चात हीरा बेन को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी,लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी इस हौसले के साथ मानो उन्होंने ठान लिया हो कि

“अभी मुझे दूर तक जाना है मंजिल अभी दूर है मेरी अभी मुझे उस मंजिल को पाना है ”

आगे उन्होंने अपने पिता के सहयोग से 12वी तक की पढ़ाई पूरी की लेकिन मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थी समाज की नकारात्मक सोच और ससुराल में परिवार के सहयोग ना मिल पाने के कारण उन्होंने काफी संघर्ष किया और एक छोटी सी उम्र में जब उन्हें पहली बार पता चला कि मासिक धर्म क्या होता है ! और प्रत्येक महिला को इस पीढ़ा से क्यों गुजरना होता है ! इसी बीच अपनी पहली मासिक स्थिती के साथ हीरा बेन गर्भवती हो गई अभी सही से उन्होंने अपनी किशोर अवस्था को जिया भी नहीं था ..कि एक नई जिंदगी को इस दुनिया में लाकर वो मां बनने वाली थी , एक नई जिम्मेदारी के साथ कई सारे सवालों के साथ हीरा बेन ने खुद को संभाला और हिम्मत से इस जीवन के नए अध्याय की शुरुआत की है !

अब आधी से ज्यादा लगभग 45 वर्ष की आयु में उन्हें ये अवसर मिला कि वो CDPO के सहयोग से आंगनवाड़ी में एक आंगनवाड़ी सहायिका के रूप कार्य कर सके और इस श्रेत्र में अपनी अहम भूमिका निभा सके..

लेकिन मुश्किलें अभी पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुई हैं उन्होंने काफी संघर्ष किया है और खुद पर कई बार संदेह भी किया है !
“पर कही ना कही हीरा बेन के दृण निश्चय ने उन्हें हिम्मत दी मानो कह रही हों कि
“जिस दिन मैं उड़ना चाहूंगी, उस दिन ये आसमान भी छोटा पड़ जाएगा।”

हालांकि उनके संघर्ष का अभी अंत नहीं हुआ..पर उनके इस साहस को जयशंकर प्रसाद जी की चंद पंक्तियों से व्यक्त करना भावपूर्ण लगता है !

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में।
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में
आँसू से भींगे अंचल पर
मन का सब कुछ रखना होगा
तुमको अपनी स्मित रेखा से
यह संधिपत्र लिखना होगा