Ahmedabad Foundation Day: आज अहमदाबाद का 614वां जन्मदिन है। 26 फरवरी 1411 को अहमद शाह ने मानेक बुर्ज के पास ईंट रखकर अहमदाबाद की स्थापना की थी। इस खास दिन पर मानेक बुर्ज के वंशजों द्वारा मानेकनाथ मंदिर पर ध्वजा चढ़ाई जाती है और आरती की जाती है। अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (AMC) द्वारा अहमदाबाद के स्थापना दिवस को मनाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। AMC ने मानेक चौक पर पुष्प अर्पण किया और मानेक बुर्ज यानी एलिस ब्रिज पर ध्वजा पूजन और आरती का आयोजन किया। इस अवसर पर अहमदाबाद की मेयर प्रतिभा जैन, भाजपा के कॉर्पोरेटर, स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य, पूर्व विधायक भूषण भट्ट और डिप्टी म्युनिसिपल कमिश्नर मौजूद रहे।
छह सदियों में अहमदाबाद की पहचान बदलती गई है। एक वक्त था जब यह अपनी पोल और दरवाजों के लिए जाना जाता था, लेकिन आज यह एक हेरिटेज सिटी के रूप में प्रसिद्ध है। पहले कांकरीया और लकड़ीया पुल अहमदाबाद की पहचान थे, जबकि आज रिवरफ्रंट और अटल ब्रिज नए लैंडमार्क बन चुके हैं। कभी ‘मिलों का मैनचेस्टर’ कहा जाने वाला अहमदाबाद अब मॉल कल्चर का हिस्सा बन चुका है।
अहमदाबाद शहर की स्थापना से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि 1411 में मुजफ्फर वंश के सुल्तान अहमद शाह अपने शिकारी कुत्ते के साथ यहां आए थे। यहां एक खरगोश ने उनके कुत्ते को भगा दिया, जिससे प्रेरित होकर अहमद शाह ने यहां नई राजधानी बसाने का विचार किया। उन्होंने धार्मिक गुरु शेख अहमद खट्टू से इस जगह को राजधानी बनाने की अनुमति मांगी। गुरु ने कहा कि यदि चार ऐसे ‘अहमद’ मिल जाएं, जिन्होंने कभी दोपहर की नमाज न छोड़ी हो, तो यह शहर बस सकता है। इसके बाद अहमद शाह ने गुजरात में खोज कर दो अहमद पाए, तीसरे अहमद खट्टू और चौथे खुद अहमद शाह, इस प्रकार चार अहमद और 12 बाबाओं ने मिलकर अहमदाबाद की स्थापना की।
मानेक बुर्ज का इतिहास
अहमदाबाद के केंद्र में स्थित मानेक बुर्ज के इतिहास से एक रोचक दंतकथा जुड़ी हुई है। अहमदाबाद के इतिहास में मानेकनाथ बाबा का विशेष महत्व है। आज खाने-पीने के लिए प्रसिद्ध मानेक चौक का नाम भी इन्हीं के कारण पड़ा है।
मानेकनाथ बाबा अपनी चमत्कारी शक्तियों के लिए जाने जाते थे और उन्हें ‘गोदड़िया बावा’ के नाम से भी पहचाना जाता था। जब अहमद शाह ने शहर में किला बनाने का काम शुरू किया, तो बाबा मानेकनाथ ने अपनी शक्ति से इसे रोकने की कोशिश की। वह दिनभर ऊन की एक चादर बुनते और रात में उसे खोल देते, जिससे किले की दीवारें गिर जातीं।
यह सिलसिला लंबे समय तक चला, जिससे तंग आकर अहमद शाह ने मानेकनाथ बाबा को बुलवाया और पूछा कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं और क्या-क्या चमत्कार कर सकते हैं? बाबा ने कहा कि वे एक सुराखदार लोटे के मुंह से अंदर जा सकते हैं और दूसरी तरफ निकल सकते हैं। चमत्कार दिखाने के लिए जैसे ही वे लोटे में गए, बादशाह ने लोटे का मुंह और सुराख बंद कर दिया। तब बाबा ने कहा कि यदि उन्हें बाहर निकलने दिया जाए, तो वे किले की दीवारें गिराना बंद कर देंगे, लेकिन उनका नाम हमेशा याद रखा जाए। बादशाह ने उनकी यह शर्त मान ली और किले की दीवारें फिर से खड़ी होने लगीं। बाद में गणेशबाड़ी के पास, एलिस ब्रिज के किनारे स्थित बुर्ज का नाम ‘मानेक बुर्ज’ रखा गया।

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