भाषा मानव जीवन का एक सबसे रोमांचक पहलु है। यह वह है जो हमें अपने विचारों, भावनाओं और सोच को व्यक्त करने में मदद करता है। जो लगातार विकसित हो रहा है। आजकल हमारे लिए भाषा का इस्तेमाल किए बिना कम्यूनिकेट करना असंभव हो गया है। इशारों से बातें हम सिर्फ एक हद्द तक ही कर सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भाषा की शुरुआत कैसे हुई थी?
इस ब्लॉक में आज हम भाषा की शुरुआत कैसे हुई, वह इतनी विकसित कैसे बनी और टेक्नोलॉजी, संस्कृति और सामाजिक संपर्क हमारे संवाद करने के तरीकों को कैसे प्रभावित करता है, उसके बारे में जानेंगे।
भाषा की शुरुआत
जब से मानव प्रजाति का विकास हुआ होगा, तब से ही एक दुसरे से कम्यूनिकेट करने की ज़रुरत पैदा हुई होगी। शुरुआती दौर के मनुष्यों को जीवित रहने के लिए एक-दूसरे के साथ संवाद करने और भोजन इकट्ठा करने, घर बनाने और शिकारियों के खिलाफ खुद का बचाव करने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता रहती होगी। और उसके लिए कम्यूनिकेट करने की ज़रुरत होती होगी।
उस दौर में वे लोग इशारों का इस्तेमाल करते थे। उसके बाद धीरे-धीरे जानवरों की और बाकी प्राकृतिक चीज़ों की आवाज़ की नक़ल करके एक दूसरे से बात किया करते थे। इसके बाद जैसे-जैसे मानव विकास करता गया, वैसे ही उसका दिमाग भी विकसित होता गया। इसी विकास के साथ वह इन सब आवाज़ों को, साउंड्स को और इशारों के एक पैटर्न में संजोता गया। इससे फिर भाषा की शुरुआत हुई। इस पूरे प्रोसेस को “Grunt Theory” के नाम से जाना जाता है।
Grunt Theory के अलावा Bow-wow theory, Co-evolution theory, Gesture theory, Bonding theory, Continuity theories, Discontinuity theories, और Innate faculty theories भी है जिन्होंने भाषा का विकास बताया है।
अगर थ्योरी के हिसाब से जानें तो Bow-wow theory यह बताती है कि प्राकृतिक साउंड्स के ज़रिये पहले बात की जाती थी। वहीं Co-evolution theory यह बताती है कि जैसे-जैसे मनुष्य जैविक रूप से विकसित हुआ, वैसे-वैसे भाषा का विकास हुआ। दूसरी ओर Discontinuity Theory का यह मानना है कि मानव विकास के दौरान भाषा काफी अचानक प्रकट हुई थी।
भाषाओं का विकास एक जगह से दूसरे जगह प्रवास करने, पर्यावरण परिवर्तन और सामाजिक संरचनाओं के कारण होता हुआ प्रतीत होता है। इसका अंदाजा आप की प्राचीन गुफाओं में उकेरी हुई कलाकृतियों से लगा सकते हैं।
जैसे-जैसे साल बीतते गए, वैसे-वैसे भाषा में भी बदलाव होते गए। उदाहरणानुसार, भारत में पहले सिर्फ संस्कृत और द्रविड़ियन भाषा बोली जाती थी। लेकिन, वक्त बीतने के बाद हिंदी का विकास हुआ। उसी तरह इस बदलते दौर के साथ हम कई भाषाओं का मिश्रण भी देख पा रहे हैं। जैसे कि आजकल शुद्ध हिंदी नहीं बोली जाती, उसमें काफी कुछ उर्दू मिश्रित होती है।
वैसे ही टेक्नोलॉजी में बदलाव के कारण, भाषा में भी कई बदलाव नज़र आ रहे हैं। आधुनिक तकनीक के आगमन ने भाषा के विकास में एक नए युग की शुरुआत की है। डिजिटल संचार प्लेटफ़ॉर्म हमारे भाषा का उपयोग करने के तरीके को नया आकार दे रहे हैं, नए शब्दों को पेश कर रहे हैं, वाक्यविन्यास को बदल रहे हैं और यहां तक कि संचार के बारे में हमारे सोचने के तरीके को भी बदल रहे हैं।
सोशल मीडिया, मैसेज करने के ऍप्स, और बाकी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स भाषा के विकास का एक साधन बन गए हैं। जैसे-जैसे हम डिजिटल युग में आगे बढ़ रहे हैं, भाषा का विकास नए और अप्रत्याशित रास्ते अपनाने के लिए तैयार है, जो मानव संचार के लगातार बदलते परिदृश्य को दर्शाता है।
इसलिए मानव जब बदलता है, जब वह विकास करता है, तो अपने आसपास की चीज़ों का भी विकास साथ में करता है। खासकर जिसके बिना वह रह नहीं सकता। बदलते युग के साथ भाषा का बदलना ज़रूरी है। हालाँकि, इस बदलाव के चलते कई भाषाएं लुप्त होती जा रही है।
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