गुजरात के वलसाड जिले के वपी शहर में इन दिनों राजनीति की ज़मीन गर्म हो चुकी है। कारण है—एक ऐसा बैनर जिसमें लिखा गया था ‘राष्ट्रपति राघव राजा राम, देश बचा गए नाथूराम’। इस बैनर ने सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक, बहस का तूफान खड़ा कर दिया है।*
कथित बैनर में नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया गया, जो महात्मा गांधी के हत्यारे के तौर पर जाना जाता है। इस तरह के बयान और बैनर न सिर्फ संविधान की आत्मा को ठेस पहुँचाते हैं, बल्कि आज़ादी की लड़ाई में शामिल उन तमाम बलिदानियों की भावना का अपमान भी करते हैं।
इस विवाद पर कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने इसे ‘घोर निंदनीय’ बताया और सवाल उठाए कि क्या अब देश में हत्यारों को नायक बनाकर पेश किया जाएगा? कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इस तरह की गतिविधियाँ देश के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने का प्रयास हैं।
गुजरात की सियासत में इस बैनर ने नया मोड़ ला दिया है। विपक्ष इसे लेकर सत्तारूढ़ दल पर हमलावर है, तो वहीं प्रशासन जांच की बात कहकर बचाव की मुद्रा में नजर आ रहा है।
सवाल ये उठता है कि क्या राष्ट्रवाद की परिभाषा बदल रही है? क्या हम अपने इतिहास से कुछ सीख पाए हैं? और सबसे बड़ा सवाल क्या अब पोस्टर तय करेंगे देश की सोच?
समय की माँग है कि राष्ट्रभक्ति को नफरत और विभाजन की राजनीति से दूर रखा जाए। यह ज़रूरी है कि युवा पीढ़ी को सही इतिहास और विचारों से जोड़ा जाए, न कि उन्हें गुमराह किया जाए।

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