एक ओर वो दुनिया है, जहाँ मौत का मतलब केवल अंत नहीं बल्कि एक सार्वजनिक संदेश बन गया है। और दूसरी ओर है इंसानियत की वो चीख जो कहती है क्या इंसाफ़ के नाम पर तड़पाना ज़रूरी है?
हाल ही में अमेरिका में इलेक्ट्रिक चेयर यानी बिजली के झटके से दी गई मौत ने एक बार फिर दुनिया को हिला कर रख दिया। उस शख्स को जिस तरह झटका दिया गया, वह शरीर से नहीं, आत्मा से तड़प उठा। बिजली की लहरों से छटपटाता इंसान और दर्शक दीर्घा में बैठे लोग – जैसे कोई फिल्म चल रही हो, पर ये सच्चाई थी!
अब सवाल उठता है – जब दुनिया भर में इंसानियत और करुणा की बातें हो रही हैं, तो क्या इस तरह की सजा ज़िंदा रहनी चाहिए?
इसी बहस के बीच आया है भारत का एक नाम – राणा, जो इस वक्त सऊदी अरब में फांसी की सज़ा का सामना कर रहा है। कहा जा रहा है कि अमेरिका का यह ताज़ा मामला राणा की फांसी के खिलाफ आवाज उठाने वालों को नया ज़रिया दे सकता है।
क्या राणा को बचाया जा सकता है?
सऊदी अरब की सख्त कानूनी व्यवस्था और अमेरिका के इस घटनाक्रम के बाद अब मानवाधिकार संगठन, भारत सरकार और आम लोग सवाल पूछ रहे हैं – “क्या यह न्याय है या प्रतिशोध?”
राणा के परिवार वालों की आंखें नम हैं, लेकिन उम्मीद बाकी है। और शायद, यही उम्मीद इस बार बिजली से तेज़ होगी – एक इंसान की ज़िंदगी बचाने के लिए।
अंत में सवाल ये नहीं है कि सज़ा दी जाए या नहीं… सवाल ये है कि क्या सज़ा ऐसी होनी चाहिए जिससे इंसान मरने से पहले कई बार मरे?

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