तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच लगातार खींचतान की स्थिति के बीच मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। उन्होंने राज्यों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक हाई लेवल कमेटी के गठन का ऐलान किया है, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस कुरियन जोसेफ करेंगे।
इस कमेटी का उद्देश्य सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे भारत में संघीय ढांचे की रक्षा करना होगा — खासकर उन राज्यों के लिए जो भाषा, संस्कृति और राजनीतिक दृष्टि से केंद्र से अक्सर भिन्न मत रखते हैं, जैसे कश्मीर, केरल और नॉर्थ ईस्ट के राज्य।
कमेटी क्या करेगी?
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संविधान पर शोध करेगी और यह समीक्षा करेगी कि कैसे राज्यों के अधिकारों को धीरे-धीरे केंद्र के अधीन कर दिया गया।
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जनवरी 2026 तक एक अंतरिम रिपोर्ट पेश की जाएगी, जबकि अंतिम रिपोर्ट दो वर्षों में पूरी की जाएगी।
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केंद्र-राज्य के बीच संबंधों को कैसे बेहतर बनाया जाए, इसके उपाय सुझाए जाएंगे।
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यह कमेटी यह भी देखेगी कि जो अधिकार पहले राज्यों के पास थे और अब केंद्र द्वारा नियंत्रित किए जा रहे हैं, उन्हें कैसे पुनः स्थापित किया जा सकता है।
स्टालिन का तीखा प्रहार
विधानसभा में बोलते हुए मुख्यमंत्री स्टालिन ने साफ कहा:
“ऐसी स्थिति में जब राज्य अपनी शक्ति खो रहे हैं, हमें संविधान का पुनर्मूल्यांकन करना होगा। यह केवल तमिलनाडु की बात नहीं है, बल्कि भारत के हर कोने की विविधता की रक्षा की बात है। दिल्ली में बैठा कोई व्यक्ति यह कैसे तय कर सकता है कि किसी राज्य के लोगों को क्या चाहिए?”
अंबेडकर और संविधान की बात
स्टालिन ने संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि संघ और राज्य दोनों संविधान की रचना हैं और कोई किसी के अधीन नहीं है। उन्होंने चेताया कि अगर परिसीमन 2026 में जनसंख्या के आधार पर होगा, तो दक्षिणी राज्यों को उनकी जनसंख्या नियंत्रण नीति की सज़ा मिलेगी।
GST और टैक्स वितरण पर हमला
मुख्यमंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि जीएसटी लागू होने के बाद तमिलनाडु जैसे राज्यों के राजस्व का बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार ने अपने पास रख लिया है।
“हम एक रुपया टैक्स देते हैं और बदले में हमें केवल 29 पैसे मिलते हैं। ये कैसा न्याय है?”
नीट और नई शिक्षा नीति पर विरोध
स्टालिन ने NEET परीक्षा को ग्रामीण छात्रों के खिलाफ बताते हुए इसे छात्रों की जान पर भारी बताया। उनका कहना था कि राज्य विधानसभा में NEET के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया है और तमिलनाडु सरकार ऐसे कानूनों से डरती नहीं।
साथ ही उन्होंने तीन भाषा नीति के तहत हिंदी थोपे जाने के प्रयास की भी आलोचना की और कहा कि तमिलनाडु नई शिक्षा नीति को स्वीकार नहीं करेगा।
तमिलनाडु सरकार का यह कदम भारत के संघीय ढांचे में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ सकता है। जब एक राज्य अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए कमेटी का गठन करता है, और वो भी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में, तो यह सिर्फ एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं बल्कि एक विचारधारा की घोषणा है।
देश में भाषा, शिक्षा, टैक्सेशन और प्रशासनिक अधिकारों पर जो बहस है, वो अब और गहराएगी। तमिलनाडु सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि एक संकेत है – कि भारत की “एकता में विविधता” को शब्दों से निकलकर व्यवस्था में उतरने की ज़रूरत है।
“यह सिर्फ स्टालिन बनाम केंद्र नहीं, यह भारत के लोकतांत्रिक संघीय ढांचे की अग्नि परीक्षा है।”

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