महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है। मुख्यमंत्री पद की शपथ से पहले देवेंद्र फडणवीस और एनसीपी नेता अजित पवार के नाम की चर्चा तो जोरों पर है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे की नाराजगी ने माहौल को गरमा दिया है। शपथ ग्रहण समारोह के इन्विटेशन कार्ड में उनका नाम न होने से यह साफ हो गया कि शिंदे और बीजेपी के बीच गृह मंत्रालय को लेकर सहमति नहीं बन पाई है।
सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजाम
आज शाम 5:30 बजे मुंबई के आजाद मैदान में शपथ ग्रहण समारोह होगा। समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, और जेपी नड्डा समेत 2,000 से अधिक वीवीआईपी शामिल होंगे। अनुमान है कि करीब 40,000 लोग इस कार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे।
सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद है। पुलिस ने क्षेत्र को नो फ्लाइंग जोन घोषित कर दिया है। ड्रोन और सीसीटीवी के जरिए निगरानी रखी जाएगी। 5 एडिशनल पुलिस कमिश्नर, 520 अधिकारी, और 3,500 पुलिसकर्मी मैदान और आसपास के इलाकों में तैनात रहेंगे।
फडणवीस का राजनीतिक सफर
देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। 1989 में विद्यार्थी परिषद से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले फडणवीस अपने कड़े प्रशासनिक फैसलों और रणनीतिक कौशल के लिए पहचाने जाते हैं। दूसरी ओर, अजित पवार छठी बार डिप्टी सीएम बनकर अपनी मजबूत पकड़ का प्रमाण दे रहे हैं।
शिंदे की नाराजगी या नई चाल?
शिवसेना के कई विधायक शिंदे को मनाने में जुटे हैं। संजय शिरसाट का कहना है कि शिंदे उनकी बात सुनेंगे और शपथ लेंगे। लेकिन शिंदे के इस रवैये ने नए सस्पेंस को जन्म दे दिया है। क्या यह नाराजगी सिर्फ गृह मंत्रालय को लेकर है, या इसके पीछे कोई और रणनीति छिपी है?
कौन बनेगा महारथी?
महाराष्ट्र की राजनीति में यह दौर महज सत्ता का हस्तांतरण नहीं, बल्कि नई दिशा तय करने का है। बीजेपी और एनसीपी के बढ़ते समीकरणों ने शिंदे गुट को कमजोर किया है। शिंदे को यह समझना होगा कि राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने के लिए उन्हें गठबंधन के भीतर ही अपनी ताकत साबित करनी होगी। वहीं, फडणवीस की बढ़ती ताकत बताती है कि उन्होंने विरोधियों को कूटनीति से मात देने की कला में महारथ हासिल कर ली है।
क्या शिंदे अपने समर्थन में बने रहेंगे, या महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ आएगा? इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में साफ होगा। तब तक, सबकी नजरें आज शाम के शपथग्रहण समारोह पर टिकी हैं।
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