सूरत | आर्थिक तंगी और कर्ज वसूली के बढ़ते दबाव ने एक और परिवार को मौत के मुंह में धकेल दिया। सूरत के अमरोली रोड स्थित छापराभाठा के एंटीलिया फ्लैट्स में शनिवार को एक ही परिवार के तीन सदस्यों ने जहर पीकर अपनी जान दे दी। भरत दिनेश सासंगिया (54), उनकी पत्नी वनीता सासंगिया (52) और बेटा हर्ष भरत सासंगिया (30) आर्थिक तंगी से इस कदर टूट चुके थे कि उन्होंने सामूहिक आत्महत्या जैसा भयावह कदम उठा लिया।
आसपास के लोगों को जब इस घटना की जानकारी मिली, तो तुरंत 108 एम्बुलेंस बुलाई गई और तीनों को स्मीमेर अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस को घटनास्थल से एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें कर्ज न चुका पाने और कर्ज वसूली के दबाव की पीड़ा जाहिर की गई थी।
हीरा कारोबार की मंदी बनी परिवार के विनाश का कारण
भरतभाई सासंगिया हीरा उद्योग से जुड़े हुए थे, जबकि उनकी पत्नी गृहिणी थीं और बेटा हर्ष रत्न कलाकार के रूप में कार्यरत था। लेकिन दिवाली के बाद आई मंदी ने इनकी जिंदगी में तूफान ला दिया। उद्योग में आई गिरावट के चलते पिता-पुत्र दोनों की नौकरी चली गई। मजबूरी में भरतभाई ने वॉचमैन की नौकरी कर ली, जबकि हर्ष लोन विभाग में काम करने लगा।
परिवार जिस फ्लैट में रह रहा था, उसकी लोन किश्तें बकाया थीं और लगातार दबाव के कारण वे भारी मानसिक तनाव झेल रहे थे। जब तक वे किश्तें चुका पाते, तब तक कर्ज देने वालों ने उन्हें बुरी तरह परेशान करना शुरू कर दिया।
बिकता मकान, लौटाई एडवांस रकम और मौत का आखिरी फैसला
सुसाइड नोट में दो लोगों का नाम लिखा हुआ था, जिनका दबाव इस त्रासदी की एक बड़ी वजह माना जा रहा है। परिवार ने अपने फ्लैट को 22 लाख रुपये में बेचने की कोशिश की थी और 1 लाख रुपये एडवांस ले भी लिए थे। लेकिन खरीदार को बाद में पता चला कि मकान पहले से लोन पर था, जिसके चलते उसने सौदा रद्द कर दिया और एडवांस की रकम वापस मांगी। इसी को लेकर कर्जदार लगातार दबाव बना रहे थे और आखिरी बार उसी सुबह 9 बजे भी उनका फोन आया था।
क्या आत्महत्या ही समाधान है?
यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि एक भयावह सामाजिक समस्या की तस्वीर है। जब से जुलाई 2022 में आर्थिक संकट ने सूरत को झकझोरना शुरू किया है, तब से अब तक 9 परिवार सामूहिक आत्महत्या कर चुके हैं। हाल ही में 7 मार्च 2024 को भी एक व्यक्ति ने अपने परिवार के साथ मौत को गले लगा लिया था।
कर्ज का बोझ, आर्थिक अस्थिरता और लगातार बढ़ते सामाजिक दबाव के चलते लोग आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं, जो हमारे समाज के तंत्र पर गहरा सवाल खड़ा करता है। क्या हमारे पास इतनी मजबूत व्यवस्था नहीं है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे लोगों को मदद मिल सके? क्या बैंक और कर्जदाता सिर्फ वसूली के लिए बने हैं, न कि समाधान निकालने के लिए?
जरूरत है बदलाव की
सरकार को चाहिए कि वह आर्थिक रूप से कमजोर और संकट में फंसे लोगों के लिए एक प्रभावी राहत योजना लाए। बैंक और वित्तीय संस्थानों को भी चाहिए कि वे वसूली के बजाय पुनर्भुगतान के आसान रास्ते सुझाएं, ताकि लोग आत्महत्या जैसे कदम उठाने के बजाय अपने संकट से निकलने का रास्ता ढूंढ सकें।
आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती, लेकिन अगर समाज, सरकार और वित्तीय संस्थाएं समय रहते इन परेशान हाल परिवारों की मदद करें, तो कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।
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