देशभर में विवाद का केंद्र बना वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ पर है। इस कानून के खिलाफ दायर 70 से अधिक याचिकाओं में से केवल 5 याचिकाओं को सुनवाई के लिए चुना गया है, जिनमें AIMIM प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि शेष 65 याचिकाएं हस्तक्षेप याचिकाओं के रूप में जुड़ी रहेंगी, जिससे कोर्ट की कार्यवाही सुव्यवस्थित और प्रभावी हो सके।
केंद्र को 7 दिन का समय, अगली सुनवाई 5 मई को
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच – CJI संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन – ने केंद्र सरकार को 7 दिन के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इसके बाद याचिकाकर्ताओं को 5 दिन में प्रत्युत्तर देना होगा। अगली सुनवाई 5 मई को दोपहर 2 बजे तय की गई है। इस बीच, कोर्ट ने मामले का नाम भी बदलते हुए इसे ‘In Re: Waqf Amendment Act’ कर दिया है।
सुनवाई के लिए चुनी गई 5 याचिकाएं और याचिकाकर्ता:
1. असदुद्दीन ओवैसी – AIMIM अध्यक्ष और हैदराबाद सांसद
2. अर्शद मदनी – इस्लामी विद्वान, दारुल उलूम देवबंद के प्रिंसिपल
3. मुहम्मद जमील – सामाजिक कार्यकर्ता
4. मोहम्मद फजलुर्रहीम – AIMPLB महासचिव
5. शेख नूरुल हसन – मणिपुर NPP विधायक
कानूनी तकरार की जड़ें: क्या कहती हैं याचिकाएं?
याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क है कि यह संशोधित कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (धार्मिक स्वतंत्रता), 25-26 (धार्मिक प्रबंधन की स्वतंत्रता), 29 (अल्पसंख्यकों के अधिकार) और 300A (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
सबसे विवादास्पद प्रावधानों में यह है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुसलमानों को शामिल करने और जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्ति पर अंतिम निर्णय देने का अधिकार दिया गया है। याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह सीधे-सीधे धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप है, जो संविधान की आत्मा के खिलाफ है।
सरकार का पक्ष: कानून सुधार के नाम पर तर्क
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि सरकार जवाबदेह है और कानून लाखों सुझावों के बाद बना है। उन्होंने यह भी कहा कि कई संपत्तियां और गांव वक्फ में अवैध रूप से जोड़े गए थे, जिनके समाधान के लिए यह संशोधन आवश्यक था। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि वह कानून पर अंतिम निर्णय नहीं दे रहा, लेकिन कुछ कमियों की ओर जरूर इशारा कर रहा है।
AIMPLB का बड़ा ऐलान: 87 दिन का आंदोलन
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ‘वक्फ बचाओ अभियान’ की घोषणा की है, जो 11 अप्रैल से 7 जुलाई तक चलेगा। इस दौरान देशभर से 1 करोड़ हस्ताक्षर एकत्र किए जाएंगे और प्रधानमंत्री को सौंपे जाएंगे।
समझिए विवाद की गंभीरता: धार्मिक संस्था या प्रशासनिक ढांचा?
ववक्फ कानून पर सुप्रीम सुनवाई: ओवैसी समेत 5 याचिकाओं से तय होगा देश का फैसला!”
क्फ को लेकर यह भी बहस है कि इसे धार्मिक संस्था माना जाए या प्रशासनिक। संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कहा कि वक्फ बोर्ड एक वैधानिक संस्था है, धार्मिक नहीं। सुप्रीम कोर्ट भी अपने पूर्व फैसलों में यह स्पष्ट कर चुका है।
इस पूरे मसले में सवाल केवल एक समुदाय विशेष का नहीं, बल्कि हमारे संविधान की उस आत्मा का है, जो धर्मनिरपेक्षता और समानता की बात करता है। यदि किसी धार्मिक ट्रस्ट को सरकार नियंत्रित करना चाहे तो उसे सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होना चाहिए। केवल मुस्लिम वक्फ को ही निशाना बनाना न केवल पक्षपातपूर्ण प्रतीत होता है, बल्कि यह संवैधानिक संतुलन को भी चुनौती देता है।
वहीं, यदि वाकई वक्फ की संपत्तियों में भ्रष्टाचार हुआ है, तो उसका समाधान पारदर्शी जांच और सशक्त निगरानी तंत्र से होना चाहिए, न कि धार्मिक अधिकारों में कटौती से।

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