सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि आरक्षण योग्यता के विपरीत नहीं है बल्कि इसके वितरण प्रभाव को आगे बढ़ाता है। शीर्ष अदालत ने केंद्र को मेडिकल पाठ्यक्रमों में अखिल भारतीय कोटा (एआईक्यू) सीटों पर ओबीसी को 27 फीसदी और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देते हुए यह बात कही है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि न्यायिक औचित्य हमें कोटा पर रोक लगाने की अनुमति नहीं देगा, जब काउंसिलिंग लंबित हो, खासकर उस मामले में जहां संवैधानिक व्याख्या शामिल हो। पीठ ने कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप से इस साल प्रवेश प्रक्रिया में देरी होती, पात्रता योग्यता में किसी भी बदलाव से प्रवेश प्रक्रिया में देरी होती और क्रॉस मुकदमेबाजी भी होती। हम अभी भी महामारी के बीच में हैं और इस तरह देश को डॉक्टरों की जरूरत है। दरअसल, शीर्ष अदालत ने अपने फैसले का विस्तृत कारण बताया है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रतियोगी परीक्षाएं आर्थिक-सामाजिक लाभ को नहीं दर्शाती हैं, जो कुछ वर्गों को मिला है। इसलिए योग्यता को सामाजिक रूप से प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि प्रदीप जैन के फैसले को इस तरह से नहीं पढ़ा जा सकता कि अखिल भारतीय कोटा सीटों में कोई आरक्षण नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि परीक्षाओं की तारीखें तय होने के बाद नियमों में बदलाव किया गया। अदालत ने कहा कि एआईक्यू सीटों में आरक्षण देने से पहले केंद्र को इस अदालत की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं थी और इस तरह उनका फैसला सही था।
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