National Milk Day: भारत में डेयरी उद्योग को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए तकनीकी और वैज्ञानिक प्रयोगों का सहारा लिया जा रहा है। इसी कड़ी में गुजरात के वडोदरा जिले में कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination – AI) के माध्यम से दुग्ध के उत्पादन बढ़ाने का एक सफल प्रयोग किया गया। पुणे स्थित BAIF (Bhartiya Agro Industries Foundation) द्वारा तैयार “सेक्स फीमेल डोज” का उपयोग नंदेसरी के 9 गांवों की महिला सहकारी दुग्ध समितियों के मवेशियों पर किया गया।
यह प्रयोग वडोदरा के दीपक फाउंडेशन के प्रोजेक्ट सुरभि के तहत किया गया। इसमें 400 गाय-भैंसों को लिंगयुक्त खुराक दी गई। परिणामस्वरूप, 89% मामलों में मादा बछड़े पैदा हुए। विशेष खुराक के उपयोग से जन्मे मादा बछड़ों की वजह से इन समितियों का दूध उत्पादन हर साल 15,000 लीटर तक बढ़ गया, जिससे महिला दुग्ध उत्पादकों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
मुख्य आंकड़े और प्रभाव
- लाभार्थी गांव:
- साकरियापुरा, मिश्रपुरा, राजगढ़, रूपापुरा, रामपुरा, धड़का, रायका, दामापुरा और नंदेसरी।
- गाय-भैंसों पर प्रयोग:
- कुल 400 मवेशियों पर खुराक का प्रयोग किया गया।
- इनमें से 197 मवेशियां गर्भवती हुईं।
- जन्मे 177 बछड़ों में 45 गायें और 132 भैंसें शामिल हैं।
- आर्थिक लाभ:
- औसतन ₹50,000 प्रति गाय की कीमत के अनुसार, 98.50 लाख रुपये के नए दुधारू मवेशियों की वृद्धि हुई।
कृत्रिम गर्भाधान के इस प्रयोग से महिलाओं के दुग्ध उत्पादन में काफी अच्छी बढ़ोतरी देखी गई है। दूध उत्पादन में हर साल 15,000 लीटर की वृद्धि दर्ज की गई। इससे न केवल दुग्ध समितियों की आय बढ़ी बल्कि परिवारों को आर्थिक स्थिरता मिलने से गांवों में खुशहाली आ गई है।
लिंगयुक्त मादा खुराक की विशेषताएं
- उत्पादन: यह खुराक बीएआईएफ, पुणे द्वारा तैयार की गई।
- संग्रहण: खुराक को माइनस 2 डिग्री सेल्सियस पर संरक्षित करना होता है।
- परिवहन: विशेष कंटेनरों के माध्यम से खुराक मवेशियों तक पहुंचाई गई।
महिलाओं ने इस तकनीक के जरिए अपने मवेशियों की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही आर्थिक स्वतंत्रता भी हासिल की। परियोजना में शामिल महिलाओं ने बेहतर स्वास्थ्य वाले मादा बछड़े पाए, जिनसे भविष्य में दूध उत्पादन और आय में और वृद्धि की उम्मीद है।
इस तकनीक के सकारात्मक प्रभावों को रेखांकित करने के लिए पिछले साल सकरियापुरा में एक बछड़ा रैली आयोजित की गई। इस रैली ने न केवल लोगों को जागरूक किया बल्कि उन्हें इस तकनीक का लाभ उठाने के लिए प्रेरित भी किया।
वडोदरा में कृत्रिम गर्भाधान तकनीक का यह प्रयोग भारत के डेयरी उद्योग के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे न केवल मवेशियों की उत्पादकता बढ़ी है बल्कि ग्रामीण महिलाओं की आय में भी सुधार हुआ है। इस प्रयोग के दीर्घकालिक प्रभाव भारत की डेयरी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
इस पहल से न केवल तकनीकी विकास बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्गों के आर्थिक सशक्तिकरण का सपना भी साकार हो रहा है।
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