संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवम्बर को शुरू हुआ था और यह 20 दिसंबर तक चलेगा। इसी सत्र में सोमवार को राज्यसभा में संविधान पर दो दिवसीय चर्चा की शुरुआत हुई, जिसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोला। 1 घंटे 20 मिनट की अपनी स्पीच में उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने संविधान में संशोधन सिर्फ अपने परिवार और वंशवाद को बढ़ावा देने के लिए किए, न कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए।
वित्त मंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने संविधान में बेशर्मी से परिवर्तन किए, जो सिर्फ सत्ता में बैठे लोगों की सुरक्षा के लिए थे। उनका यह बयान कांग्रेस के ऐतिहासिक फैसलों पर सवाल उठाते हुए दिया गया, जिनमें पार्टी ने अपने परिवार को बचाने के लिए संविधान के मूल सिद्धांतों के साथ छेड़छाड़ की।
सीतारमण ने कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया कि पार्टी ने इमरजेंसी के दौरान विपक्षी नेताओं को दबाने के लिए संवैधानिक अधिकारों का हनन किया। उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा ‘किस्सा कुर्सी का’ फिल्म पर बैन और अन्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ कदम उठाने का उदाहरण देते हुए यह कहा कि कांग्रेस ने सिर्फ अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए ऐसे फैसले किए।
इसके साथ ही वित्त मंत्री ने कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि जब बीजेपी ने GST लागू किया था, तो कांग्रेस ने इसका विरोध किया था, यहां तक कि इसे “गब्बर सिंह टैक्स” तक कह दिया था, लेकिन अब वही कांग्रेस जब सरकार के कदमों की आलोचना करती है, तो यह पूरी तरह से विरोधाभासी है।
वहीं, कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सीतारमण के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि ये लोग संविधान के प्रति अपनी नफरत को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि इनकी सोच संविधान के खिलाफ है, और यह संविधान को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। खड़गे ने शायरी के माध्यम से भी अपना विरोध जताया और कांग्रेस पार्टी के इतिहास की अहम घटनाओं को याद किया, जिनमें इंदिरा गांधी द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ की गई ऐतिहासिक लड़ाई का जिक्र किया।
वित्त मंत्री की ये टिप्पणियाँ न केवल कांग्रेस के लिए एक गंभीर आरोप हैं, बल्कि यह दिखाती हैं कि किस तरह राजनीतिक दलों के बीच संवैधानिक और ऐतिहासिक घटनाओं पर विचारधाराओं का टकराव हो रहा है। यह बहस देश के भविष्य और लोकतंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे संविधान की मूल भावना और राजनीति के साथ उसके संबंध पर प्रश्न उठते हैं।
संसद में हो रही इस बहस को लोकतंत्र और संविधान के असल मूल्य समझने का अवसर माना जा सकता है। चाहे सत्ता में बैठे दल हों या विपक्ष, सभी को यह समझना चाहिए कि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करना हर नागरिक का कर्तव्य है। ऐसी राजनीति जो संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाती है, वह भविष्य में लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर सकती है। यह समय है कि हम संविधान को एक धर्म के रूप में मानें और राजनीतिक लाभ के लिए इसके साथ खिलवाड़ करने से बचें।
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