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मातृभाषा: संस्कृति की आत्मा और पहचान

21 फरवरी यानी फिर से मातृभाषा के महिमा गान का दिन। गुजराती भाषा को जीवंत बनाए रखने का मुद्दा अब बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और साहित्यकारों के लिए चिंता और चिंतन का विषय बन चुका है। अब इसमें राजनेता भी जुड़ गए हैं। पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों के लिए माध्यमिक स्तर तक गुजराती विषय अंग्रेजी माध्यम में भी अनिवार्य होना चाहिए, यह स्वागत योग्य है। कई माता-पिता तो अपने बच्चों को कक्षा 12 तक गुजराती माध्यम में ही पढ़ाना चाहते हैं। ऐसे विद्यार्थी भी हैं जिन्होंने गुजराती माध्यम में पढ़कर ही देश-विदेश में विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त की है। लेकिन सभी माता-पिता या विद्यार्थी ऐसा आत्मविश्वास नहीं दिखा सकते।

माता-पिता दिखावे या गर्व की भावना से ही बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने नहीं भेजते, बल्कि वास्तविकता यह है कि कक्षा 12 के बाद सभी शैक्षणिक शाखाओं की पुस्तकें और संदर्भ ग्रंथ अंग्रेजी में ही होते हैं। पचास साल पहले वर्तमान माता-पिता ने गुजराती माध्यम में पढ़कर आगे बढ़े थे, यह उदाहरण बार-बार वर्तमान पीढ़ी को देना भी उपयुक्त नहीं है। दुर्भाग्य से, आज गुजरात और महाराष्ट्र में गुजराती माध्यम की स्कूलें बंद हो रही हैं और जो बची हैं, उनकी प्रतिष्ठा कम हो रही है।

नई पीढ़ी गूगल या सर्च इंजन में जो भी जानकारी और संदर्भ ढूंढती है, वह अंग्रेजी में होती है। गुजराती में अनुवाद के विकल्प जरूर हैं, लेकिन वे अकसर भाषा के साथ छेड़छाड़ कर देते हैं। गुजराती न्यूज़ रीडर और चैनलों के गुजराती स्क्रॉल पर लिखे गए वाक्य कई बार शर्मनाक होते हैं। मूल अंग्रेजी का गुजराती अनुवाद ऐसा होता है कि उसका अर्थ ही बिगड़ जाता है।

यह सच है कि सरकारी निर्णय, अदालत के फैसले और अन्य कानूनी दस्तावेज, जो केवल अंग्रेजी में उपलब्ध होते हैं, वे गुजराती में भी उपलब्ध होने चाहिए। विश्वविद्यालयों ने यह प्रयोग भी किया कि कुछ डिग्री पाठ्यक्रम मातृभाषा में दिए जाएं, लेकिन गुजराती विद्यार्थियों ने ही स्वीकार किया कि अंग्रेजी माध्यम अधिक अनुकूल लगता है, क्योंकि व्यवहार में हम अंग्रेजी शब्दों का अधिक प्रयोग करते हैं।

चिकित्सा भाषा के उदाहरण लें तो हम ‘किडनी’, ‘स्टेंट’, ‘पोस्ट मॉर्टम’, ‘वेंटिलेटर’ जैसे शब्द अंग्रेजी में ही बोलते हैं, लेकिन ‘आंत’, ‘मोतीया’, ‘हड्डी’, ‘दांत’ आदि बीमारियों के नाम गुजराती में बोलते हैं। इसी तरह, ‘मोबाइल’, ‘सिम कार्ड’, ‘पैन कार्ड’, ‘टेलीविजन’, ‘लाइटर’, ‘शर्ट’, ‘केचअप’, ‘जू़स’ जैसे सैकड़ों शब्दों का गुजराती रूपांतर संभव होते हुए भी प्रचलित नहीं है।

गुजराती भाषा की चिंता साहित्य, अखबारों के पाठन और गुजराती फिल्मों के प्रचार से जुड़ी है, लेकिन नई पीढ़ी इससे दूर होती जा रही है। इसका कारण भाषा से अरुचि नहीं, बल्कि स्मार्टफोन, एप्स, फिल्मों के सबटाइटल और पॉडकास्ट का हिंदी व अंग्रेजी में अधिक उपलब्ध होना है। प्रिंट माध्यम में पाठकों की संख्या कम हुई है, लेकिन सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की क्षमता को बढ़ाया है। फेसबुक पोस्ट, व्हाट्सएप संदेश, और पॉडकास्ट में लोग गुजराती में ही लिखते हैं।

जो लोग गुजराती टाइप नहीं कर पाते, वे अंग्रेजी वर्णमाला के सहारे गुजराती लिखते हैं। अब एआई तकनीक इतनी विकसित हो रही है कि अंग्रेजी में लिखा हुआ वाक्य पल भर में गुजराती में अनुवाद हो जाएगा।

नई पीढ़ी गुजराती कवि सम्मेलन, लोक संगीत, गरबा, नाटक और गुजराती फिल्मों से जुड़ी हुई है। विदेशों में बसे गुजराती युवा भी गुजराती भाषा को लेकर अधिक गर्व महसूस करते हैं। अब ‘मैं गुजराती हूं लेकिन अंग्रेजी में बोलना पसंद करूंगा’ जैसी सोच कम हो रही है।

साहित्य की बात करें तो ज़वेरचंद मेघाणी, मुंशी और गुणवंत राय आचार्य जैसे साहित्यकारों की कृतियों में प्रयुक्त कई शब्द और मुहावरे आज की युवा पीढ़ी को समझने में कठिनाई होती है। साहित्य को इस तरह रूपांतरित करने की आवश्यकता है कि यह नई पीढ़ी के लिए सुलभ और आकर्षक बने।

शिक्षकों, पत्रकारों, लेखकों और वक्ताओं को यह समझना होगा कि भाषा का उद्देश्य विद्वत्ता दिखाना नहीं, बल्कि संदेश को सही ढंग से संप्रेषित करना है। हमें भाषा को जनसामान्य की नब्ज को समझते हुए विकसित करना होगा।

गुजराती भाषा को लेकर चिंता की जरूरत नहीं, क्योंकि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले अधिकतर गुजराती विद्यार्थी परीक्षा पास करने के लिए ही अंग्रेजी का उपयोग करते हैं। वे अंग्रेजी में सहज रूप से संवाद नहीं कर सकते।

गुजराती भाषा और संस्कृति को जीवित रखना आवश्यक है। जैसे फ्रांस और जर्मनी के लोग अपनी मातृभाषा में ही गर्व से संवाद करते हैं, वैसे ही हमें भी गुजराती भाषा का सम्मान करना चाहिए। भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा की पहचान भी है। अगर हमें गुजराती भाषा को बचाना है, तो इसे अपने परिवार, मित्रों और व्यवसाय में सम्मानजनक स्थान देना होगा।