कोल्हापुर के शाहूपुरी इलाके की एक झोपड़ी में 70 साल की महिला की लाश कटी-फटी हालत में मिली। पास ही उसका बेटा बैठा था, हाथ में तवे से उठाया हुआ मांस जैसा कुछ लिए हुए। यह दृश्य जितना वीभत्स था, उतना ही डरावना भी। और जब पता चला कि वह मांस किसी जानवर का नहीं, बल्कि खुद उसकी मां का था – तो रूह तक कांप गई।
शुरुआत एक मामूली झगड़े से हुई थी…
सुनील कुचकोरवी, जो कभी वेल्डिंग का काम करता था, धीरे-धीरे नशे का आदी बन चुका था। पिता की मौत के बाद मिलने वाली पेंशन से मां यल्लवा किसी तरह घर चला रही थीं। लेकिन बेटा शराब, गांजा, और मटन के लिए आए दिन पैसे मांगता। एक रोज जब मां ने मटन के लिए पैसे देने से मना किया, तो उसने गुस्से में कहा – “तुझे मटन खाना है? तो मुझे ही मारकर खा ले।”
कहने को तो यह बस एक कटाक्ष था, लेकिन बेटे ने इसे आदेश समझ लिया।
रक्षिता की आंखों से खुली हत्या की परतें
सुनील की 8 साल की भतीजी रक्षिता घर के पास खेल रही थी। गेंद नाली में जा गिरी। जब वह लेने गई, तो देखा – नाली से खून बह रहा है। वह डरते हुए घर की तरफ दौड़ी और जो देखा, उससे चीख पड़ी। दादी की लाश खून से लथपथ पड़ी थी, और चाचा तवे पर कुछ भून रहे थे – वह इंसानी मांस था।
“मैंने मां को नहीं मारा, बस बिल्ली मारी थी” – सुनील का बचाव
पुलिस ने जब सुनील को हिरासत में लिया, तो वह लगातार एक ही बात दोहराता रहा – “मैंने बिल्ली मारी थी, मां को नहीं।” लेकिन IO संजय मोरे की जांच में कुछ और ही सामने आया।
FSL ने तवे से बरामद मांस और घटनास्थल से मिले चाकू, कपड़े और खून के सैंपल का डीएनए टेस्ट किया। रिपोर्ट्स से साफ हो गया – तवे पर जो मांस पड़ा था, वह यल्लवा का ही अंग था। सुनील के शरीर, कपड़े और नाखून पर भी उसी खून के निशान मिले।
तीन चाकू, एक कलेजा, और एक अधमरा इंसान
पुलिस का दावा है कि सुनील ने तीन धारदार चाकुओं से मां की हत्या की। फिर सीने को चीरकर कलेजा, दिल और आंतें निकालीं। अंगों को भूनकर खाया। सब कुछ पूरी तरह होशोहवास में किया गया था – मेडिकल रिपोर्ट में यह भी साफ हो गया।
लेकिन… क्या सिर्फ रिपोर्ट्स से होगा इंसाफ?
इस केस में कोई चश्मदीद नहीं है। कोर्ट में सुनील की दोषसिद्धि केवल डीएनए और फॉरेंसिक रिपोर्ट्स पर टिकी है। पुलिस ने “लास्ट सीन थ्योरी” का सहारा लिया – जिसमें आखिरी बार रक्षिता ने दादी को सुनील के साथ जिंदा देखा था।
90 दिन की सीमा से पहले चार्जशीट दायर कर दी गई। लेकिन सवाल अब भी बना है – बिना प्रत्यक्ष गवाह के क्या यह खूनी दरिंदगी कोर्ट में टिक पाएगी?
इंसानियत के चेहरे पर खून से लिखी गई यह शर्मनाक कहानी है
यह घटना किसी हॉरर फिल्म से नहीं, हमारे समाज के कोने से आई है। एक मां, जिसने बेटे को अपनी कोख में पाला, आखिर में उसी बेटे के हाथों चीर दी गई। यह मामला सिर्फ हत्या का नहीं, बल्कि इंसानियत की आत्मा के कत्ल का है। जो बेटा अपनी मां के अंग भूनकर खा सकता है, वह किसी हैवान से कम नहीं।
न्याय व्यवस्था को अब एक कठोर संदेश देना चाहिए – ऐसे अपराधों में कोई ‘संदेह का लाभ’ नहीं, सिर्फ सजा होनी चाहिए।

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