हुगली: पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के बेंगाई पंचायत इलाके से मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक परिवार को केवल इस कारण सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि पति-पत्नी HIV पॉजिटिव हैं। दुखद यह है कि इस बहिष्कार की मार उनके 7 वर्षीय मासूम बेटे पर भी पड़ी है, जिसे स्कूल से निकाल दिया गया है।
हर तरफ से बहिष्कृत, कोई मदद को तैयार नहीं
गांव के लोगों की कड़ी आपत्ति के चलते बच्चे को स्कूल में प्रवेश देने से मना कर दिया गया। इतना ही नहीं, पीड़ित परिवार के अलावा उनके नजदीकी रिश्तेदारों समेत पांच अन्य परिवारों को भी सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि गांव के ई-रिक्शा और टोटो चालक तक उन्हें बैठाने से इनकार कर रहे हैं। इस वजह से परिवार का रोजमर्रा का जीवन मुश्किल हो गया है।
स्थिति यह हो गई है कि जिस तालाब से यह परिवार पानी लेता था, अब वहां कोई गांववाला नहीं जा रहा है। यह मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न की पराकाष्ठा है, जो दिखाता है कि आज भी समाज में अंधविश्वास और जागरूकता की कमी कितनी गहरी जड़ें जमाए हुए है।
सरकार की नाकामी या समाज की संकीर्ण सोच?
स्वास्थ्य मंत्रालय और विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं बार-बार जागरूकता अभियान चलाकर यह स्पष्ट कर चुकी हैं कि एचआईवी किसी को छूने, साथ रहने या सामाजिक मेलजोल से नहीं फैलता। बावजूद इसके, इस गांव के लोग अब भी पुराने रूढ़िवादी विचारों से ग्रस्त हैं।
जब इस मामले को लेकर हुगली जिले के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी मृगांक मौलिक कर से बात की गई, तो उन्होंने पीड़ित परिवार को जरूरी सहायता देने का आश्वासन दिया। लेकिन प्रशासनिक मदद केवल कागजों तक सीमित नजर आती है।
स्कूल प्रशासन का गैर-जिम्मेदाराना रवैया
जब स्कूल प्रशासन से इस बारे में सवाल किया गया, तो स्कूल की प्रधानाध्यापिका चंदना भुई ने यह कहते हुए जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया कि यह फैसला अभिभावकों और गांववालों की मांग पर लिया गया है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि व्यक्तिगत रूप से वह चाहती हैं कि बच्चा स्कूल में आकर पढ़ाई करे।
स्थानीय प्रशासन का वादा, लेकिन समाधान कब?
गांव के पंचायत उपप्रधान वासुदेव मंडल ने कहा कि वे ग्रामीणों से बात कर इस समस्या का हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह कब होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
सामाजिक बहिष्कार, अमानवीयता की चरम सीमा!
यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि समाज के संवेदनहीन चेहरे को उजागर करती है। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को समाज से अलग-थलग कर देना सिर्फ उनकी तकलीफों को बढ़ाता है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि प्रशासन न केवल इस परिवार की मदद करे, बल्कि गांव के लोगों को भी जागरूक करने के लिए ठोस कदम उठाए।
अगर समय रहते इस मानसिकता को नहीं बदला गया, तो यह केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की हार होगी। हमें यह समझना होगा कि बीमारी से लड़ाई अलग है, लेकिन किसी को इंसानियत से बेदखल कर देना हमारी मानसिक संकीर्णता को दर्शाता है। इस परिवार को समाज से काटने के बजाय हमें उन्हें अपनाने की ज़रूरत है।
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