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a happy family

छोटा परिवार सुखी परिवार या दुखी परिवार

बात कड़वी है, लेकिन सच्ची है

भारत आज सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। इस जनसंख्या को लेकर विभिन्न मन्चों पर अलग-अलग चर्चाएं होती है। कुछ साल पहले सरकार ने नारा दिया था हम दो हमारे दो, उसके बाद नारा आया कि हम दो हमारे एक। और आज के वक्त में एक प्रथा भी चल पड़ी है जहां कहा जाता है कि पति और पत्नी दोनों ही बिना बच्चे के सुखी है। वहीं नारों में कहा जाता है कि छोटा परिवार सुखी परिवार। हमारे देश के अधिक्तर लोग बच्चे पैदा करने को लेकर यही बात करते हैं। लेकिन, इसका परिणाम क्या होता है। क्या सच में छोटा परिवार सुखी परिवार होता है। क्या सच में सच्चा यही है।

यदि आप भी इन नारों का समर्थन करते हैं तो एक बार सोच के देखिए यदि आप भी सिर्फ एक या दो बच्चे पैदा करते हैं तो आने वाले लगभग 10-20 सालों में क्या-क्या परिवर्तन होगा। यदि ऐसा हो तो कई ऐसे रिश्ते हैं जो खत्म हो जाएंगे जैसे भाई-भाभी, देवर-देवरानी, ननद-जेठ, काक-काकी, चाचा-चाची,बुआ-फूफा। आप तो इन रिश्तों से वाकिफ हैं, लेकिन आने वाला भविष्य इन रिश्तों से परे रहेगा। क्योंकि आपके कोई भाई-बहन है ही नहीं। यदि दो बच्चें हैं तो हालात कई हद्द तक ठीक हो सकते हैं, लेकिन यदि एक ही है तो फिर ये अनेकों प्रकार के रिश्ते आपके घरों में ही कहीं दफ्न हो जाएंगे।

बच्चा पैदा करना एक व्यक्तिगत और परिवारिक फैसला है, जिसमें कई पहलू और मामले शामिल होते हैं। माना कि आज कल बच्चों को पालना एक बहुत ही मुश्किल हो गया है। एक तो बढ़ती महंगाई और दूसरा जीवन शैली। अपना विकास हर कोई चाहता है। भागती-दौड़ती दुनियां में सभी रेस लगाना चाहते हैं। कोई अपनी जिंदगी में कुछ भी पीछे नहीं छोड़ना चाहता। इसलिए आज के दौर में लोग एक या दो बच्चों से आगे की नहीं सोच पा रहे हैं। मां-बाप सोचते हैं बच्चे कम हो तो उनका पालन-पोषण उतना ही अच्छा कर पाएंगे। उन्हें उतनी ही अच्छी जिंदगी दे पाएंगे।

लेकिन, यदि दूसरे पहलू को देखा जाए तो आने वाले भविष्य में केवल ढाई तीन लोगों के परिवार में जीवन सीमित हो जाएगा। बेटे की शादी होने के बाद केवल घर पर बहु अकेली रहेगी। न कोई हिम्मत देने वाला बड़ा भाई, न तेज तर्राट सी कोई छोटी बहन। न कोई भाई, न कोई छोटा देवर, न जेठ, न चुलबुली सी पहन, न कोई तेज तर्रारत बुआ। कुल मिलाकर इस एक बच्चा फैशन और सिर्फ एक मैं और एक तू की मूढ़ता और अज्ञानता में ये सभी रिश्ते मर जाएंगे।

इसी सोच के चलते परिवार अब खत्म होते जा रहे हैं। दो भाई वाले परिवार भी अब आखिरी स्टेज पर हैं। दो भाई हैं, लेकिन शादी के बाद दोनों अलग-अलग रहते हैं। पहले झोपड़-पट्टी में भी बड़े परिवार एक साथ रह लेते थे, लेकिन अब बड़े बंगलों में भी ढाई तीन लोग करने का फैशन चल पड़ा है। यहां तो जितने लोग परिवार के नहीं दिखेंगे उससे ज्यादा घरों में नौकर देखने को मिल जाएंगे।

ये सारी बातों को यदि गहराई से सोचों तो मन दुखी हो जाता है कि आज हम किस ओर आगे बढ़ रहे है। हमारी तरक्की तो हो रही है, लेकिन हम अपने बच्चों को वो मजा नहीं दे पाएंगे जो मजा हमने अपने परिवार में रहकर किया।

ऊपर दी गई बातों पर गौर फरमाए और विचार करें कि छोटा परिवार सुखी परिवार या दुखी परिवार।