आज प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया के सामने एक विकराल समस्या बन चुका है। हर दिन लाखों टन प्लास्टिक कचरा हमारे पर्यावरण को दूषित कर रहा है, जिसे खत्म करने में सैकड़ों साल लग जाते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के सुरेंद्र बैरागी और उनका परिवार इस समस्या का समाधान निकालने के लिए एक अनोखी पहल चला रहा है। यह परिवार मंदिरों में चढ़ाए गए नारियल के खोल का पुनः उपयोग कर प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कप, गिलास और कटोरी जैसी चीजें बना रहा है।
कैसे हुई इस पहल की शुरुआत?
सुरेंद्र बैरागी और उनके परिवार ने देखा कि मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले नारियल अक्सर बेकार पड़े रह जाते हैं या कचरे में फेंक दिए जाते हैं। उन्होंने सोचा कि इनका बेहतर उपयोग किया जा सकता है। इसी विचार के साथ उन्होंने नारियल के सूखे खोल से पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाने की शुरुआत की।
कैसे बनते हैं नारियल के खोल से उपयोगी उत्पाद?
यह परिवार मंदिरों और अन्य स्थानों से नारियल के सूखे खोल इकट्ठा करता है, फिर उन्हें काटकर, तराशकर और पॉलिश करके टिकाऊ और आकर्षक कप, गिलास और कटोरियां तैयार करता है। ये उत्पाद पूरी तरह प्राकृतिक होते हैं और प्लास्टिक के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत और टिकाऊ होते हैं।
इस पहल का उद्देश्य क्या है?
- प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना – ये प्राकृतिक उत्पाद सिंगल-यूज प्लास्टिक का एक शानदार विकल्प हैं, जिससे प्लास्टिक कचरा कम किया जा सकता है।
- पर्यावरण संरक्षण – नारियल के खोल से बने उत्पाद बायोडिग्रेडेबल होते हैं, यानी वे आसानी से नष्ट हो जाते हैं और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते।
- गरीबों की मदद – यह परिवार इन नारियल से बने कप, गिलास और कटोरियां गरीब स्ट्रीट वेंडर्स को मुफ्त में बांट रहा है, जिससे वे प्लास्टिक के उपयोग से बच सकें।
लोगों को किया जा रहा जागरूक
यह परिवार सिर्फ उत्पाद बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक कर रहा है। वे समझा रहे हैं कि प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के लिए कितना हानिकारक है और कैसे हम प्राकृतिक विकल्पों को अपनाकर पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।
इस परिवार की पहल सराहनीय है और यह हमें सिखाती है कि कचरे को बेकार समझने की बजाय उसे नए रूप में ढालकर उपयोगी बनाया जा सकता है। जब हम हर चीज के लिए प्लास्टिक पर निर्भर हो गए हैं, तब इस तरह के प्राकृतिक विकल्प अपनाना बहुत जरूरी हो गया है। अगर हर व्यक्ति थोड़ा-थोड़ा योगदान दे, तो हम सच में एक प्लास्टिक-मुक्त भारत का सपना साकार कर सकते हैं।
क्या हम भी इस बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं?

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