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शौर्यवान, पराक्रमी, सुधारक मल्हारराव होलकर

मल्हारराव होलकर एक ऐसे शासक थे, जिन्होंने अपनी मालवा की सूबेदारी के दौरान जनहित में अनेकों कार्य किए। पुण्यश्लोका अहिल्याबाई होलकर ने उनके संबल से मालवा राज्य की ऊंचाइयों को नए आयाम दिए।

मालवा राज्य के पहले शासक मल्हार राव होलकर थे ।वे पहले मराठा सूबेदार थे।लेकिन इससे पहले मालवा का भूगोल और मालवा के पूर्व समय का इतिहास भी जानना उतना ही जरूरी है। यह मालवा विस्तार मध्यप्रदेश का पठार विस्तार है। यह एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई था। पहली ईस्वी सदी के इतिहास में मालवा का नाम मिलता है। 547 ईस्वी में यहां पर भीलों का राज था।यह पूरा इलाका मध्य प्रदेश के पश्चिम भाग,राजस्थान और दक्षिण पूर्व मैं चंबल नदी और पश्चिम भाग में माही नदी क्षेत्र से जुड़ा है। यहां पर सभ्यता और संस्कृति के साथ-साथ भाषा का भी विकास हुआ था। धन्ना भील का यहां राज था।चंद्रगुप्त मौर्य ने यहां आक्रमण किया और भील राजा धन्ना भील से मुकाबला हुआ ।लेकिन चाणक्य नीति के चलते इन दोनों के बीच मित्रता हुई।यह 335 से 413 का काल था। समय के साथ स्थितियां बदली। सन 1401 ईस्वी में मालवा क्षेत्र का सूबेदार दिलावर खान घुरी था, जिसने धार को अपनी राजधानी बनाया था। मालवा पर परमार भोज ने भी राज किया। इतिहास के अनुसार यह काल 1000 ईसवी से 1055 ईसवी तक का है।

ये तो हुई पूर्व समय की बात। मल्हार राव होलकर का समय काल 16 मार्च 1693 से लेकर 20 मई 1766 तक का बताया जाता है । वे पहले मराठा सूबेदार थे ।उनकी चार पत्नियां थी ।पहली पत्नी गौतमाबाई, जिन से बचपन में ही उनका विवाह हुआ था ।वे चरवाहा परिवार के थे। गौतमाबाई और मल्हार राव के बेटे का नाम खंडेराव होलकर । उनकी शादी मल्हार राव होलकर ने अहिल्याबाई से करवाई। (अहिल्याबाई का अपना ही एक अलग इतिहास है।) इनकी दूसरी पत्नी थी , द्वारकाबाई , जिसकी बेटी का नाम था सीताबाई। द्वारकाबाई अपने दामाद को उत्तराधिकारी बनाने के लिए राजनीतिक चालें चलती रहती थी। उनकी तीसरी पत्नी का नाम था बानाबाई और चौथी पत्नी थी हल्कू बाई ।वे खांडा रानी कहलाई क्योंकि वे राजस्थान की राजकुमारी थी, और मल्हारराव होलकर की तलवार से विवाह कर मालवा आई थी।

अपने शौर्य, बल से उन्होंने पंजाब तक मराठा साम्राज्य का विस्तार किया। सन 1721 में मध्य भारत में वे पहले मराठा सूबेदार बने ,और होलकर वंश की शुरुआत हुई। अपने साहस और पराक्रम के कारण वे पेशवा सरकार के काफी करीबी थे ।उन्होंने अनेकों युद्ध लड़े , यहां तक कि सन 1736 में उन्होंने दिल्ली मुहिम को भी जीत का सिरपाव दिया, और मराठा साम्राज्य का विस्तार किया ।छत्रपति शिवाजी महाराज के हिंदवी स्वराज का परचम उन्होंने उत्तर भारत तक फहराया। सन 1818 तक मराठा महासंघ के एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में उन्होंने इंदौर से अपना शासन चलाया।

पानीपत के युद्ध से वे भाग गए थे, ऐसी किंवदंती प्रचलित है। पर कहा जाता है कि, मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ ने उस युद्ध में उनके साथ आई उनकी पत्नी पार्वतीबाई को सुरक्षित जगह तक पहुंचाने का जिम्मा मल्हारराव को दिया था, जिसके चलते उनको युद्धभूमि छोड़कर जाना पड़ा था। इस युद्ध में विश्वासराव पेशवा की हुई मृत्यु से युद्ध की स्थिति कमजोर पड़ने लगी थी।मल्हार राव होलकर ने इस युद्ध में मोहम्मद शाह अब्दाली को पूरी टक्कर दी थी।युद्ध छोड़कर जाने से उनकी कीर्ति पर कोई फर्क नहीं पड़ा,पर वे दुखी थे।

मल्हार राव होलकर की उम्र भी हो चली थी। सन 1766 में 20 मई को आलमपुर मुहिम के दौरान उनका निधन हुआ।आज भी आलमपुर में उनकी छतरी मौजूद है।उनकी मृत्यु होने पर उनके साथ उनकी दो रानियां द्वारकाबाई और बानाबाई सती होने का उल्लेख मिलता है। उनके बाद उनकी पुत्रवधू पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर ने 1767 से 1795 तक मालवा का शासन चलाया और प्रगति के नए आयाम बनाए।

होलकर वंश में 14 महाराजा हुए ।इस वंश ने 220 साल तक राज्य किया। इस वंश के वंशज और इंदौर के अंतिम महाराजा के बेटे प्रिंस रिचार्ज होलकर ने अहिल्या वाडा में स्थित अपने घर को होटल में तब्दील कर दिया है ।आज यह अहिल्याबाई फोर्ट होटल के नाम से जाना जाता है।

मल्हार राव होलकर एक ऐसी शख्शियत थे ,जिसने अपनी अधिकतर उम्र मुहिमो में ही गुजारी।उनकी गैर हाजिरी में खंडेराव होलकर के पुत्र मालेराव होलकर द्वारा पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर की अवमानना और अपने तीखे मिजाज के कारण दी जाती परेशानियां यह एक अलग ही किस्सा है।इस पर आगे जरूर बात करेंगे ।