मध्य प्रदेश की एक यूनिवर्सिटी में उस समय हड़कंप मच गया जब एक चपरासी ने यूनिवर्सिटी एग्ज़ाम की उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच कर डाली। शिक्षा के मंदिर में ऐसा मज़ाक पहले शायद ही देखा गया हो। जब यह खबर फैली कि चपरासी उत्तर पुस्तिकाएँ जाँच रहा है, तो छात्रों और अभिभावकों में भारी नाराजगी देखने को मिली।
मामला जब उच्च अधिकारियों तक पहुँचा, तो तत्काल एक्शन लिया गया। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने प्रिंसिपल और तीन प्रोफेसरों को सस्पेंड कर दिया। जांच में यह भी सामने आया कि यह गड़बड़ी कोई एक दिन की नहीं थी, बल्कि एक सोची-समझी मिलीभगत का हिस्सा थी।
जहाँ एक ओर छात्र दिन-रात मेहनत कर परीक्षा की तैयारी करते हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तर पुस्तिकाओं की जांच किसी अयोग्य व्यक्ति द्वारा की जाए, तो यह न केवल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि पूरी शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठाता है।
समाज में गूंजे सवाल:
क्या अब शिक्षण संस्थानों में भरोसा करना भी मुश्किल हो गया है?जब जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग ही लापरवाही बरतें, तो कौन निभाएगा भविष्य की ज़िम्मेदारी?
अब सभी की निगाहें उस जांच पर टिकी हैं जो इस मामले की तह तक जाएगी। क्या दोषियों को सज़ा मिलेगी? क्या ऐसे मामलों पर सख्त कानून बनने चाहिए?

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