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Friday, March 21   2:38:50
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इक्कीसवीं सदी: विज्ञान और अध्यात्म का संगम

इक्कीसवीं सदी आधुनिकता, कंप्यूटर और तकनीक का युग है। इस बौद्धिक युग में विज्ञान का बोलबाला हर दिशा में देखने को मिलता है। इसलिए, इसे विज्ञान का युग कहना किसी भी तरह से अतिशयोक्ति नहीं होगी। विज्ञान ने मानव जीवन को अनेक साधनों से सुख-सुविधाओं से भर दिया है। तर्क, तथ्य और प्रमाण के आधार पर आज का मनुष्य रोबोट और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में पहुँच चुका है। लेकिन फिर भी, विज्ञान की कुछ सीमाओं को नकारा नहीं जा सकता।

मनुष्य के लिए केवल भौतिक सुख पर्याप्त नहीं है, बल्कि आत्मिक आनंद और मानसिक शांति भी आवश्यक है। विज्ञान हमें सुख-सुविधाएँ तो दे सकता है, लेकिन सच्ची आत्मशांति और स्थायी आनंद केवल अध्यात्म के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।

विज्ञान की सीमाएँ और अध्यात्म का महत्व

विज्ञान ने हमें बंदूक, रिवॉल्वर, पिस्तौल और एके-56 जैसे खतरनाक हथियार दिए हैं, लेकिन इन हथियारों से होने वाली हिंसा को रोकने का कोई साधन नहीं खोज पाया। लेकिन अध्यात्म में इस समस्या का समाधान है और वह है – “अहिंसा परम धर्म”। अगर अहिंसा मानव के स्वभाव में समाहित हो जाए, तो समाज में शांति और निर्भयता का वातावरण बन सकता है।

विज्ञान मनुष्य को मृत्यु से बचाने का कोई उपाय नहीं दे सकता, लेकिन अध्यात्म मृत्यु को मंगलमय और कल्याणकारी बना सकता है। अहिंसा की शक्ति इतनी प्रबल होती है कि वह एक हिंसक व्यक्ति को भी बदल सकती है। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ अध्यात्म ने हृदय परिवर्तन किया है।

भगवान बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल की कहानी

डाकू अंगुलिमाल, जो निर्दोष लोगों की हत्या कर उनकी उंगलियाँ काटकर माला बनाता था, भगवान बुद्ध के प्रभाव से परिवर्तित होकर संत बन गया। यह घटना बताती है कि अध्यात्म की शक्ति किसी को भी बदल सकती है।

स्वामी चिदानंदजी और बिच्छू की प्रेरणादायक घटना

24 सितंबर 1975 को स्वामी चिदानंदजी महाराज का 60वां जन्मोत्सव शिवारंद आश्रम में मनाया जा रहा था। जब भजन-कीर्तन चल रहा था, तब स्वामी जी गहरे ध्यान में बैठे थे। अचानक, एक बड़ा बिच्छू उनके कंधे पर आकर बैठ गया। भक्तगण घबरा गए और उसे हटाने के लिए आगे बढ़े, लेकिन स्वामी जी ने आँखें खोलकर कहा:

“अरे! आप सब मेरे जन्मदिन पर आए हैं, और यह बिच्छू भी शिवजी का दूत बनकर मुझे बधाई देने आया है। इसे शांति से बैठने दें।”

यह कहकर स्वामी जी फिर ध्यानस्थ हो गए और बिच्छू भी शांत बैठा रहा। जब सत्संग समाप्त हुआ, तो स्वामी जी जंगल की ओर गए, जहाँ आज अन्नपूर्णा भवन स्थित है। उन्होंने धीरे से झुककर बिच्छू को नीचे उतारा और उसकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद दिया।

विज्ञान ने हमें सुख-सुविधाएँ दी हैं, लेकिन सच्ची शांति केवल अध्यात्म से प्राप्त की जा सकती है। यदि हर व्यक्ति अहिंसा और प्रेम का मार्ग अपनाए, तो दुनिया में शांति और सद्भाव बना रह सकता है। अध्यात्म हमें सिखाता है कि प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का वास है, और इसी भाव से हम संसार को एक बेहतर स्थान बना सकते हैं।