सप्तपुरियों में गिनी जाने वाली अयोध्या पौने पांच वर्षों में बहुत बदल चुकी है। चार सदियों से आस्था के संघर्ष, परीक्षा और प्रतीक्षा का प्रतीक भगवान श्रीराम जन्मभूमि का मंदिर वहीं बनना शुरू हो चुका है, जहां के लिए भाजपा सहित पूरा संघ परिवार तीन दशक से ज्यादा वक्त से ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, जैसे नारे के साथ राजनीतिक ताकत की तलाश में जुटा था। अयोध्या ही नहीं बदल रही है, बल्कि इस स्रोत के सरोकारों से हासिल सत्ता की शक्ति से भाजपा ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करके, तुष्टीकरण पर रोक लगाने सहित हिंदुओं की आस्था से जु़ड़े स्थलों के विकास एवं उनके सरोकारों पर काम करके एक तरह से प्रदेश की ही नहीं, देश की राजनीति की दिशा व दशा दोनों बदल दी है। हालांकि, मौजूदा राजनीतिक समीकरणों ने अन्य दलों में भी उम्मीद जगाई है।
त्रेता युग की दिवाली को कलियुग में साकार करने के साथ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, मेडिकल कॉलेज, सैकड़ों एकड़ में नव अयोध्या बसाने की योजना जैसे काम तो हैं ही। भविष्य में अयोध्या के बड़ा पर्यटन स्थल बनने के विश्वास पर होटल, धर्मशाला और आश्रम बनाने की योजना के लिए बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदी जा रही हैं। हजारों करोड़ रुपयों की प्रस्तावित अन्य योजनाएं अयोध्या के बदलाव की कहानी को पंख लगा रही हैं। बदलाव की कहानी की बानगी है-हिंदुत्व के सांस्कृतिक सरोकारों को सहेजते, समेटते, प्राचीनता एवं नवीनता का मिश्रण…। हिंदुत्व की आस्था पर प्रदेश व केंद्र सरकारों के सरोकारों के रंग चटख करने का संदेश…। सरयू की धारा और उसके सुंदर हो रहे घाटों व दिव्यता एवं भव्यता को सहेजने के लिए राम की पैड़ी पर हो रहे काम…।
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