भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपने रेपो रेट को 6.5% पर बनाए रखा है, जिससे यह सुनिश्चित हो गया है कि आपके मौजूदा लोन महंगे नहीं होंगे और आपकी EMI में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी। यह लगातार 11वीं बार है जब केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। आखिरी बार फरवरी 2023 में ब्याज दर 0.25% बढ़ाकर 6.5% की गई थी।
हाल ही में RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक में किए गए फैसलों की जानकारी दी। यह बैठक हर दो महीने में होती है, ताकि आर्थिक हालात का मूल्यांकन किया जा सके और उचित नीति तय की जा सके।
MPC में कुल छह सदस्य होते हैं, जिनमें तीन सदस्य RBI द्वारा नियुक्त होते हैं और बाकी तीन सदस्य सरकार द्वारा नॉमिनेट किए जाते हैं। गवर्नर शक्तिकांत दास, डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर राजीव रंजन स्थायी सदस्य हैं। 1 अक्टूबर को सरकार ने राम सिंह, सौगत भट्टाचार्य और नागेश कुमार को बाहरी सदस्य के रूप में नियुक्त किया।
ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं: एक बड़ा समर्थन निर्णय
इस बैठक में छह में से चार सदस्य ब्याज दरों में कोई बदलाव करने के पक्ष में नहीं थे, जिसका नतीजा यह रहा कि अन्य महत्वपूर्ण दरें जैसे स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) दर 6.25% और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) तथा बैंक रेट 6.75% पर बरकरार रहे।
यह स्थिरता आरबीआई की सतर्क नीति को दर्शाती है, जो महामारी के बाद की आर्थिक स्थिति को देखते हुए दोनों, महंगाई नियंत्रण और विकास की स्थिरता बनाए रखने का प्रयास कर रही है।
महंगाई से निपटने के लिए लंबे समय से जारी रणनीति
2020 के बाद से RBI ने कई बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है ताकि अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाई जा सके। कुल मिलाकर, केंद्रीय बैंक ने पिछले कुछ वर्षों में ब्याज दरों में 1.10% का इजाफा किया है। हालांकि कोविड-19 संकट के बाद कुछ दरों में कटौती भी की गई, लेकिन आरबीआई का ध्यान हमेशा महंगाई को काबू में रखने और स्थिर विकास बनाए रखने पर रहा है।
आरबीआई ने कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) को 4.5% से घटाकर 4% कर दिया है। CRR वह प्रतिशत है जिसे बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास रिजर्व के रूप में रखना होता है, और इसे घटाने से बैंकिंग सिस्टम में अधिक तरलता आती है, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
कृषि लोन और डिजिटल पहल में बदलाव
कृषि क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए, RBI ने कोलेटरल फ्री कृषि लोन की सीमा को ₹1.6 लाख से बढ़ाकर ₹2 लाख प्रति उधारकर्ता कर दिया है, ताकि कृषि लागत और महंगाई को ध्यान में रखते हुए किसान और उधारकर्ता अधिक लाभ उठा सकें।
इसके अलावा, छोटे वित्तीय बैंकों को भी UPI के माध्यम से क्रेडिट लाइन उपलब्ध कराने की मंजूरी दी गई है, जिससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही, डिजिटल धोखाधड़ी को रोकने के लिए आरबीआई ने AI आधारित म्यूलहंटर.ai मॉडल लॉन्च किया है, जो ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामलों को कम करने में मदद करेगा।
महंगाई से मुकाबला करने में पॉलिसी रेट का महत्व
RBI के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से मुकाबला करने का एक सशक्त उपकरण है। जब महंगाई अधिक होती है, तो केंद्रीय बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में पैसे के प्रवाह को कम करता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाले कर्ज की लागत बढ़ जाती है, और वे अपनी लोन दरें बढ़ा देते हैं। इसका असर यह होता है कि आर्थिक गतिविधियाँ धीमी होती हैं और महंगाई में कमी आती है।
वहीं, जब अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजरती है, तो केंद्रीय बैंक पॉलिसी रेट को घटा देता है, जिससे बैंकों के लिए सस्ता कर्ज उपलब्ध होता है और ग्राहकों को भी कम दरों पर लोन मिलते हैं।
RBI का ब्याज दरों को स्थिर बनाए रखने का निर्णय एक समझदारी भरा कदम है। यह निर्णय उन लोगों के लिए राहतकारी है जिनके पास लोन हैं, क्योंकि इससे उनकी मासिक EMI पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वहीं, केंद्रीय बैंक की वित्तीय समावेशन, डिजिटल सुरक्षा और लिक्विडिटी को बढ़ावा देने की योजनाएं सकारात्मक हैं। हालांकि, हमें यह देखना होगा कि आने वाले महीनों में ग्लोबल और डोमेस्टिक आर्थिक हालात के आधार पर RBI अपनी नीतियों में किस तरह के बदलाव करता है।
कुल मिलाकर, RBI का निर्णय यह दर्शाता है कि वह महंगाई पर नियंत्रण बनाए रखते हुए, स्थिर और संतुलित आर्थिक विकास की ओर अग्रसर है। ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं होने से उधारकर्ताओं को राहत मिली है, जबकि अन्य कदम जैसे कृषि लोन की सीमा बढ़ाना और डिजिटल धोखाधड़ी से लड़ने के उपायों से यह साफ है कि केंद्रीय बैंक भविष्य के लिए अपनी रणनीति तैयार कर रहा है।

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